Lesson based on collection of tales developed by Milind Ranade and Sandhya Bhagat (YHS Fulbright-Hays 2022)
Proficiency Level: Intermediate Mid/High
Time: 2 X 50 minute classes.
Objectives: Students will be able to:
- narrate a story with a beginning, middle and end parts
- explain the moral of a story
- narrate a personal experience related to the main theme of the story
Language Targets: Students use
- past tense to express activities that are repeated (iterative: चोंच में पानी भरकर लाती और उस घर पर डालती ) vs that happened once (perfect X ने कहा )
- oblique infinitive + लगना (आग बुझाने लगे, आग पर डालने लगे)
- subjunctive (मेरा सामर्थ्य नहीं है कि उसको बुझा सकूँ)
- passive voice: past participle of transitive verbs + जाना (लिखा जाएगा)
Learning Episodes:
1. The teacher shows a visual and asks the students to brainstorm what the story is about – think pair-share
2. The teacher gives a list of vocabulary words related to the story योगदान from the book ‘विविध लोककथाएँ‘ and asks the students to organize them in three categories of their choice.
3. The teacher narrates in a few sentences ‘Contribution’/ योगदान s/he has done recently using chosen vocabulary words from the word list of the story and prods students to speak and share their experiences of ‘Contribution’ in a few sentences.
4. Jigsaw Activity: The class is divided in two groups. First group gets the first half of the story, second one gets the later half. Each group reads and and supports understanding by using the vocabulary list and sharing the meaning/ arriving at the meaning by speaking with each other within the group. The groups are rearranged after 20 minutes and pairs from each group are formed with students having knowledge of the first and second part of the story. They each share their part of the story and work on the most appropriate moral of the story.
Story with pdf, grammar and glossary
योगदान
अलवर के पास अरावली पर्वतमाला की तलहटी में एक गाँव था। एक बार की बात है। अलवर के इस गाँव के एक घर में आग लग गयी। उस गांव के सब लोग मिलकर आग को बुझाने लगे। जिसने भी सुना वह आग बुझाने में सहयोग देने लगा। लोग अपने मटके, बाल्टियों व लोटे में पानी भरकर आग पर डालने लगे।उस गाँव में एक पीपल का पेड़ था। उस पेड़ पर एक कोयल व एक कौवा बैठे थे। दोनो ने देखा गाँव के सभी लोग आग बुझा रहे हैं। कोयल ने सोचा मेरा भी कुछ कर्तव्य है । मैं भी इस गाँव में रहती हूँ। यहाँ का पानी पीती हूँ। यहाँ का अन्न खाती हूँ। मेरा भी कोई फर्ज बनता है कि मैं अपने गाँव के काम आऊँ।
बस फिर क्या था। कोयल उड़कर पास के तालाब में गयी, उसने पानी में डुबकी लगाई अपनी चोंच में पानी लिया और उस घर पर डालने लगी, जिसमें आग लगी थी।
वह बार-बार इस प्रक्रिया को दोहराने लगी। चोंच में पानी भरकर लाती और उस घर पर डालती। कोयल के साथ में जो कौवा बैठा था। वह यह सब देख रहा था। उसे बहुत आश्चर्य हुआ और उससे रहा नहीं गया। उसने कोयल से कहा ‘ए कोयल बहन तेरे इस छोटी-सी चोंच में पानी लाने से क्या यह आग बुझ जाएगी? तब कोयल ने जवाब दिया, भाई आप बिल्कुल सही कह रहे हैं मेरे चोंच में पानी लाने से ये आग नहीं बुझेगी। मेरा सामर्थ्य नहीं है कि मैं इस आग को बुझा सकूं। लेकिन मैं मानती हूँ। जब कभी भी इस गाँव का इतिहास लिखा जाएगा उस इतिहास में मेरा नाम आग लगाने वालों में नहीं आग बुझाने वालों में लिखा जाएगा।
इस कहानी से यही प्रेरणा मिलती है कि सब मिलकर कैसे काम करें। कोई अकेले काम नहीं कर सकता। पानी और जंगल का काम मिलकर होता है समाज के साथ। यह महत्व नहीं रखता किसका योगदान कितना है। फिर चाहे कोई बाल्टी भरकर पानी लाए या चोंच में भरकर।
Listen to story:
read by Milind Ranade:
read by Sandhya Bhagat: