The Campaign

The dramatization “The Campaign” was commissioned by the Films Devision, Ministry of Information and Broadcasting, Government of India, in 1991. It was initially authored and later modified for STARTALK@NYU by Ashok Ojha. Read more about the video here.

अभियान: आदिवासी ग्रामीणों के संघर्ष की कहानी

Description in Hindi of the plot:

Part 1:

 

भाग 1: text

शब्द: अँगूठा, तबियत, उधारी, कमाई, साखर, नमक, भूखा, सरकारी, राशन, गाँव, सूखा, ग़रीबी, ज़िंदगी, संघर्षरत, दर्द, महसूस, सहभागी, भगत, दूध, शहर, सेठ का उधार, सूखे पत्ते, बंडल, शक्कर की बोरी, आठ सौ, परमिट, कोटा, रेट, सरकारी माल, मुनाफ़ा, सरकारी कलम, साहब, सरकारी शक्कर, हुकुम, जान छोड़, सामान, बाज़ार, तहसीलदार, तलाठी, साखर मिला पानी

दृश्य: घरों के छत, झोपड़ियाँ, रास्ते

मज़दूर रास्ता बनाते हैं । सरकारी कर्मचारी उन्हें जल्दी काम करने के लिए कहता है । बुधिया (युवती) मज़दूरों को पानी पिलाती है। मज़दूर अँगूठा लगा कर हप्ते भर का वेतन लेते हैं। उन्हें सात के बदले चार दिन का वेतन मिलता है।

रामदेव बच्चे की तबियत ख़राब होने का ज़िक्र करता है। मज़दूर व्यापारी के पास अनाज, नामक और शक्कर लेने जाते हैं।

मज़दूर शहर जाने का विचार करते हैं । रामदेव की बहू चावल साफ़ कर रही है ।

बच्चा रोता है। बुधिया बकरी का दूध लाती है।

नामदेव और राम देव देशी शराब पीने जाते हैं।

सरकारी गोदाम में कर्मचारी बातें कर रहे हैं। गाँव का व्यापारी (सेठ) वहाँ आता है, चुपके से कुछ पैसे कर्मचारी की जेब में रख देता है । दोनों कर्मचारी आपस में पैसे बाँट लेते हैं। मज़दूर गोदाम से अनाज की बोरियाँ उठा कर ट्रक में रखते हैं। ट्रक ड्राइवर परमिट दिखा कर अनाज की बोरियाँ ट्रक में डलवाता है। बुधिया जंगल से पत्ते लाकर बाज़ार में बेचती है। ट्रक ड्राइवर उससे पत्ते और अंडे ख़रीदता है ।

ट्रक ड्राइवर किसी रेस्तराँ मालिक को शक्कर की बोरियाँ बेचता है। फिर सोन पाड़ा गाँव की तरफ़ जाता है। बुधिया उसके ट्रक में बैठ कर साथ जाती है। सरकारी कर्मचारी अपने आदमी को निर्देश देता है कि सेठ के पास जाकर चावल और शक्कर भेजने का संदेश दे।

ट्रक ड्राइवर गाँव के व्यापारी (सेठ) को शक्कर बेचता है।

बुधिया सेठ के गुप्त धंधे का अनुमान लगा लेती है और सेठ से पूछती है कि वह सरकारी कर्मचारी को क्यों चावल-शक्कर भेजता है। सेठ समझाता है कि उसे ऐसा इसलिए करना पड़ता है कि सरकारी कर्मचारी के पास राशन सामान के लिए परमिट बनाने के अधिकार हैं। सेठ इशारा करता है कि सरकारी कर्मचारी के आदेश के आदेश का पालन करने के सिवा उसके पास कोई चारा नहीं। रामदेव का बेटा शक्कर लेने आता है। बुधिया बताती है कि उसने शक्कर ख़रीद लिया है।

गाँव में सरकारी कर्मचारी पानी के टैंकर के आगमन की सूचना गाँव वालों को देता है, गाँव वाले उसके आश्वासन को गम्भीरता से नहीं लेते। बुधिया पार्वती के घर जाकर शक्कर मिला पानी बच्चे को पिलाने की सलाह देती है।

सरकारी अस्पताल में डॉक्टर नहीं आए। इसकी जानकारी अस्पताल का कर्मचारी देता है।

भाग 2: 
शब्द: माल, हमदर्दी, कार्ड, लफड़ा, मंदी, चुनाव, वोट, सरकार का ध्यान, समस्या, तराज़ू, मरीज़, बुरा हाल, मदद, सरकारी टैंकर, डाक खाना, दुःख से मुक्ति, बात है सीधी, फिर भी गहरी, हिम्मत, शामिल, मोह, बारह महीने, धीरज

दृश्य: शिंगरा (रामदेव का बेटा) अस्पताल में डॉक्टर का इंतज़ार करता है। नर्स बताती है कि डॉक्टर आज नहीं आएँगे। एक डॉक्टर को कई गावों में जाना होता है। बुधिया और पार्वती जंगल से पत्ते लाकर बाज़ार में बेचना चाहती हैं। ट्रक ड्राइवर उन्हें बताता है कि शहर बंद है क्यों कि राजनेताओं ने गाँव में सूखे की स्थिति पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए शहर में ‘बंद’ रखा है। पार्वती कहती है बंद का असर गाँव वालों की आजीविका पर पड़ेगा। ट्रक ड्राइवर पत्तों के लिए कम दाम देता है।

बुधिया और पार्वती पत्ते ‘सेठ’ के पास अनाज ख़रीदने जाते हैं, लेकिन ‘सेठ’ टालने की कोशिश करता है, फिर बुधिया चेतावनी देती है उसके ग़ैर क़ानूनी धंधों की जानकारी उसे है, जिसके बाद ‘सेठ’ उसे अनाज देने पर राज़ी हो जाता है। इधर गाँव में शहर से एक व्यक्ति आता है, बुधिया और पार्वती से गाँव जाने का रास्ता पूछता है। गीत के माध्यम से दोनों युवतियाँ गाँव के स्कूल, अस्पताल, और वहाँ की अर्थ व्यवस्था का वर्णन करती हैं।

बुधिया शहरी व्यक्ति का परिचय गाँव के सरपंच से कराती है, जो उसे रहने के लिए एक कमरे की व्यवस्था कर देता है। शहरी व्यक्ति कहता है वह गाँव वालों को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखायेगा। वह बुधिया के साथ उस स्थान पर जाता है, जहाँ सड़क निर्माण का सरकारी काम चल रहा है। वहाँ तीन मटके रख कर सरकारी कर्मचारी को निर्देश देता है कि पानी पीने के लिए मज़दूरों को गाँव ना जाना पड़े, इसलिए मटकों में पानी भर कर रखें। शिंगरा, रामदेव का बेटा, मटकों में पानी भरने की ज़िम्मेदारी लेता है। शिंगरा का बेटा भूख और बीमारी से मार जाता है, इसकी सूचना देने के लिए शिंगरा सरपंच के पास आता है और उनसे चटाई माँगता है। चटाई ले कर अपने मृत बच्चे को उसमें लपेटता है और गाँव वालों के साथ दाह संस्कार के लिए गाँव के बाहर चल देता है। शहरी व्यक्ति ग्रामीण लोगों के दुःख दर्द में उनके साथ रहता है। उसे मालूम पड़ता है की बुधिया अनपढ़ है, वह उसे पढ़ाने का बीड़ा उठाता है।

Part 3: 37:20 min

भाग 3:

शब्द: अर्ज़ी, रसीद, खुले बाज़ार, इंतज़ाम, ख़बर,

दृश्य: सरपंच शहरी बाबू को बुधिया के बारे में बताता है कि वह एक अनाथ लड़की थी, जिसे उन्होंने पाल पोश कर बड़ा किया। शहरी बाबू रमेश वादा करता है कि वह बुधिया को पढ़ायेंगे, और वह पूरे गाँव को पढ़ाएगी । इलाक़े का तहसीलदार, (कलेक्टर)

समाचार पत्र में सूखे की ख़बर पढ़ कर गाँव में आता है। उसे रमेश गाँव की बुरी दशा से अवगत कराते हुए बताता है कि वहाँ ना तो डॉक्टर आता है, ना ही गाँव वालों के पास राशन कार्ड ही है। गाँव में भ्रष्टाचार का बोलबाला है, गाँव वाले सात दिन काम करते हैं, लेकिन उन्हें चार दिन का वेतन मिलता है। वह कहता है कि इलाज के अभाव में शिंगरा के नन्हें बेटे की जान चली गयी। यह सब सुन कर तहसीलदार अपने सहकर्मियों से गाँव में तुरंत डॉक्टर बुलाने और सभी गाँव वासियों के लिए राशन कार्ड की व्यवस्था करने का निर्देश देता है। तहसीलदार के निर्देश और शहरी बाबू के प्रयासों से सोनपाड़ा के वासियों के लिए राशन कार्ड तो बन जाते हैं, लेकिन तहसीलदार सोचता है, राशन कार्ड के बिना सरकारी अनाज का वितरण कैसे होता है? इधर रमेश भ्रष्ट अधिकारियों और दूकानदार की मिलीभगत का भंडाफोड़ करने के लिए गाँव वालों को सलाह देता है कि राशन तभी लें, जब उन्हें रसीद दी जाय। उसके अभियान का यह असर होता है कि नाम देव, शिंगरा और अन्य गाँववाले ‘सेठ’ के पास अनाज ख़रीदते समय रसीद की माँग करते हैं। ‘सेठ’ नक़ली रसीद थमा देता है, जिसकी जाँच करने के लिए शहरी बाबू सरकारी अधिकारियों से निवेदन करता है । चूँकि सरकारी अधिकारियों की ‘सेठ’ से मिलीभगत है, नक़ली रसीद की जाँच नहीं होती। ‘सेठ’ सरकारी अधिकारियों को घूस देकर मामले को रफ़ा दफ़ा करने की साज़िश चलता है। इस पूरे मामले में सरपंच, नामदेव और अन्य गाँव वाले इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि शहरी बाबू के अभियान के कारण गाँव में व्यापारी के साथ वैमनस्य फैल रहा है । वे सोचते हैं कि आख़िर ‘सेठ’ ही गाँव वालों की मदद करता है । शहरी बाबू गाँव में स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए, अपनी मित्र रश्मि से मदद माँगता है। वह गाँव आकर गाँव वालों को आत्म निर्भर बनने की सलाह देती है।

Part 4: 55:32 min

भाग 4:

शब्द: आत्म निर्भर, संस्था, रास्ता, देख रेख, भागीदार, तरक़्क़ी, सीने का बोझ, भलाई, अपने पैर पर खड़ा होना, अभियान

शहरी बाबू, रमेश के प्रयासों से सोनपाड़ा गाँव में राशन की दूकान कुल जाती है। जिसका उद्घाटन तहसीलदार करता है । वह इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि सरकारी गोदाम से नियमित रूप से अनाज, शक्कर आदि दूकान में पहुँचते रहे। बुधिया को दूकान चलाने की ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है और तहसीलदार से पूछती है कि सरकारी गोदाम से माल लाते समय सरकारी अधिकारी घूस तो नहीं माँगेंगे! तहसीलदार इस वितरण व्यवस्था में भ्रष्टाचार समाप्त करने का पूरा इंतज़ाम करने का वादा करते हैं ।इसी बीच गाँव का ‘सेठ’ भी जेल से छूटकर आ जाता है, उसे अपने किए पर पछतावा है जिसके लिए क्षमा याचना करता है । गाँव वाले बदली परिस्थिति में ‘सेठ’ को भी नयी व्यवस्था में सहभागी बनाने को राज़ी हो जाते हैं। रमेश सोन पाड़ा में अपनी भूमिका पूरी कर दूसरे गाँव की तरफ़ जाने की तैयारी करता है। वह बुधिया से दूकान का कारोबार आगे बढ़ाने की सलाह दे कर राम पुर की तरफ़ रवाना हो जाता है। रमेश रश्मि के साथ सम्पर्क बनाए रखने का वादा भी करता है।