भारत में भिन्न प्रकार के लोग है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सभी लोगों की भाषा, पहनावे, आदतों, आदि में अनेक अंतर दिखाई देते हैं। जहाँ इतना विशाल देश एक ही संविधान के अंतर्गत नियंत्रित किया जा रहा है, वहाँ जायज़ है कि भेदभाव तो होगा ही। हम भारतीय वैदिक काल के अनुक्रमों को आज तक लागू कर समाज चला रहे हैं। दलितों को अब भी अछूत और छोटे जात का माना जाता है। गाँवों में दलितों के लिए अलग कुआ होता है। फिर चाहे वो प्यास से मर ही क्यों न रहे हो, उन्हें ऊँची जात के कुए से पानी पीने की इजाज़त नहीं है। ऐसी नीच सोच और हरकतों के कारण दलित और कुछ ऐसी जातियों का उद्धार नहीं हो पाया है। परंतु इन जातियों के आर्थिक विकास के लिए सरकार कुछ कदम ज़रूर उठा रही है। संविधान में सचेडुलेड जातियों के लिया कोटा सिस्टम बनाया गया है। सरकारी नौकरियों, विद्यालयों, और यूनिवर्सिटीज में इन जातियों के लोगों के लिए कुछ स्थान सुरक्षित कर दिए जाते है। हाल में दलित राजनेताओं ने भी दलितों को हिम्मत देने के लिए आवाज़ उठाई है। मायावती, और राम विलास पासवान जी इसके मुख्य उदाहरण हैं। लोक सभा की पूर्व अध्यक्ष, मीरा कुमार जी भी एक प्रभावशाली दलित परिवार से हैं।
भारत की प्रमुख अर्थशास्त्रियों में से एक हैं जयति घोष जी। उनका मानना है कि भेदभाव को जड़ से उखाड़ने के लिए, आय की असमानता को कम करना ज़रूरी है। इसके लिए हमें भूमि विभाजन की नीतियों को बदलना होगा। जमींदारों की जकड़ में जो ज़मीन है, उसके कृषियों को सौंपना होगा। एक और नीति है कर की प्रणाली को बदलना। यदि उचे वर्ग के लोगो से ज़्यादा कर वसूल किया जाए, तो इससे भी आय की असमानता घटेगी।
ये तो बात हुई जात के नाम पे भेदभाव की। स्त्रियों के विरुद्ध भेदभाव भी भारतीय समाज में बहुत बड़ी समस्या है। औरतों पर घरेलू अत्याचार, बलात्कार की घटनाएं, और औरतों का अवैध व्यापार बहुत ज़्यादा बढ़ चुका है। सरकार ने इस समस्या का सामना करने के लिए भी योजनाएँ बनाई है। २०१५ में मेनका गाँधी जी ने औरतों को आय के साधन देने के लिए सरकारी नौकरियों में उनके लिए कोटे का इंतज़ाम किया। शोषित महिलाओं के लिए हर प्रान्त में सुधार केंद्र खोले गए। वहाँ उन्हें रहने के साधनों से लेकर मानसिक सहायता तक, सब उपलब्ध है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का आंदोलन भी बहुत ज़ोर शोर से आरम्भ किया गया है। सरकार का मनना है कि महिलाओं के उद्धार के लिए उन्हें शिक्षित करना अनिवार्य है। गाँवों में विद्यालय खोले गए हैं। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गाँवों में स्वयंसेविकाओं को कोतवाली का माध्यम दिया जा रहा है।
हमारे देश में भेदभाव, पक्षपात की भावना जड़ तक भरी हुई है, लेकिन इन योजनाओं के माध्यम से परिस्थितियों में बहुत सुधार आया ज़रूर है। शिक्षा और शिष्टाचार के माध्यम से बदलाव आएगा ज़रूर। चाहे देर ही आए, लेकिन दुरुस्त आएगा।