आईने में

(from “एक दिन मराकेश”)
Author’s introduction of the short story:

लड़के का शरीर नाज़ुक और पीला था । लड़की को कई बार ताज्जुब होता । वो अपना हाथ लड़के के हाथ से लगाकर नापती । उसका हाथ हर बार ज़्यादा तंदरुस्त और मज़बूत दिखता । 

लड़का तेज़ी से जल्दी जल्दी सिगरेट फूँकता । उसके ऐसे नापे को महसूस करता और अपनी घबड़ाह्ट को ढँकने के लिये कोई फूहड़ मज़ाक करता । लड़की बुरा मान जाती और तय समय से बहुत पहले तिनक कर उठ खड़ी होती । 
 
लड़का कवितायें लिखता था । प्रेम की नहीं विद्रोह की । जब वह उन्हें पढ़ता उसकी आवाज़ में आग भर जाती । लड़की सम्मोहित सुनती । उसका लड़के से दोस्ती की ज़मीन इन्हीं सुलगती हुई कविता का जँगल था जहाँ लहकती आग के अँगारे छिटक पड़ते थे । लड़का कवितायें बन्द कर अपने झोले में रखता शिशु सा निर्दोष दिखता । लड़की को कई बार लगता लड़का अपनी नहीं किसी और की कवितायें सुना रहा है ।
Painting by Pratyaksha
सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना 
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१ पाश सबसे खतरनाक
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आधी नींद में फुसफुसाती आवाज़ अपने भर्रायेपन में अस्पष्ट कुछ देर टँगी रहती है फिर जाग के चौकन्नेपन को चीथती थमती है , विलीन होती है । हेम्ब्रम के काले अँधियारे चेहरे पर एक जोड़ी झक्क सफेद आँखें नींद से जागने का सफर पलक झपकते करती हैं । इस छोटे से कोठरी में अचानक जंगल का बनैलापन अपनी तीखी तेज़ गँध के साथ भभक उठता है । हेम्ब्रम के शरीर के रोंये किसी आगत भय की आशँका में सिहरते खड़े होते हैं । हेम्ब्रम जानता है इस भय को । इसके खट्टे स्वाद को ।
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लड़की उसके गोरे हाथ को दुलार से सहलाती है। नींद मे डूबा पुरुष अनजानी भाषा में बुदबुदाता मुस्कुराता है । लड़की ने अपने समस्त शरीर को फूलों से सजा रखा है । धीमे से कोई गीत गुनगुनाती है , फूलों का हार गूँथती है । उस सोये पुरुष के आगे उसे अपना होना बहुत विशाल बहुत उदार लगता है । इतना कि उसकी छाती फैल जाती है । लगता है इस पल का होना ही समूचे जीवन का होना है जबकि इस होने का कोई साक्षी तक नहीं । भविष्य में इस होने में कितनी और घटनाओं का बीज छुपा था , लड़की नहीं जानती थी ।
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हेम्ब्रम रात के अँधेरे में टटोलकर अपना झोला खींचता है । छूकर आश्वस्त होता है सब सलामत तो है । वो द आई .. माई लव । फिर सिसकी खींचता अपने हथेलियों से सीने रगड़ता अँधेरे को अँधेरी आँखों से देखता टूटता है , शरीर जैसे हर एक कोशिका से फट पड़ना चाहती हो । 
 
किल हर किल हर किल हर 
 
आवाज़ तीव्रतर होती जाती है । हेम्ब्रम नहीं जानता किसको मार देना है । दीवार पर चढ़ती आवाज़ अपने हिस्टीरिया में पतली नुकीली उन्मादी हो जाती है । हेम्ब्रम अपने घुटने छाती से सटा किसी शिशु की तरह बिलखता है । उसकी भिंची आँखों से कोई आँसू नहीं निकलता । बस रेत के उड़ते बगूले सी छाती अँधड़ में फँसी हाँफती है । 
 
रात के अँधेरे में कोई चमगादड़ अपने अँधेपन में विक्षिप्त गोल चक्कर काटता है । कहीं किसी झिंगुर की महीन कर्कश आवाज़ टेर लगाती है और किसी कमरे में लड़की पुरुष के शरीर से लगकर सिमट जाती है । पुरुष नींद में उसे खींचता दुलार करता है । उसकी भाषा लड़की नहीं जानती लेकिन उसके दुलार को समझती है । जब इंसान भाषा नहीं जानता था तब भी जीवन में प्यार था ।
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कागज़ों के पुलिंदे में एक जर्जर , जोडों और मोडों पर फटता बचता , कोनों से घिसा , रेशे रेशे जुड़ा एक पन्ना है । वंश वृक्ष । फैमिली ट्री ।家谱 । 
कितनी भी भाषा में लिखो हेम्ब्रम जानता है पतली लकीरों की कला में कोई गोपन कथा छुपी है । उस कलाकृति के शीर्ष पर वही पुरुष और वही लड़की हैं जिनके गुणसूत्र किन किन रास्तों गुफाओं खोह पहाड़ मैदान होते समय के बहते नाव में किसी एक बिंदू तक पहुँचे हैं ।  
 
बाहर कुत्तों के भौंकने की आवाज़ अँधेरे में छनकर आती है । हेम्ब्रम अँधेरे में झोले को छाती से चिपकाये कमरे के कोने में दुबक बैठता है । उसकी साँस उसके शरीर से साथ छोड़ देती है । काल कोठरी आक्रामक कुत्तों से महफूज़ है । यहाँ परिंदा तक फटक नहीं सकता , ना कोई चींटी ही । इंसान और जानवर दूर की बात हैं । 
 
“The history of all hitherto existing society is the history of class struggles.”  
 
हेम्ब्रम जानता है इस पंक्ति को किसी ने उसके दिमाग में फिट कर दिया है । कोई चिप है जिसमें ये रिकार्डेड पंक्ति फँसे रिकार्ड की तरह लगातार बजती है । 
 
विकास के क्रम में वर्ग भेद जब विलुप्त हो जायेगा और उत्पादन राष्ट्र के विशाल संघ में केंद्रित हो जायेगा तब सार्वजनिक सत्ता अपना राजनैतिक चरित्र खो देगी । रजनीतिक सत्ता एक वर्ग विशेष के दमन के लिये आयोजित शक्ति है ।अगर सर्वहारा पूँजीपति वर्ग के साथ अपनी प्रतियोगिता के दौरान अपने को परिस्थितियों के बल पर एक वर्ग के रूप में संगठित कर ले  और क्रांति के माध्यम से अपने को शासकवर्ग में बदल ले और इस बदलाव के साथ पुरानी पद्धति के उत्पादन को खत्म कर दे तो उन परिस्थितियों के साथ साथ उन्होंने उन स्थितियों का भी खात्मा किया होगा जिनसे वर्ग भेद का अस्तित्व  है और ये करते वो एक वर्ग के रूप में अपने वर्चस्व को भी समाप्त कर देंगे ।
 
हेम्ब्रम सीधा खड़ा होता है । रीढ़ की हड्डी में और उसके गिर्द मांसपेशियों में तनाव महसूस करता है जैसे सब मिलकर उसे सीधा किये हुये हों । अपने हाथ छाती पर बाँध अपनी आवाज़ साधता है । 
फ्रेंड्स रोमंस कंट्रीमेन .. 
 
आवाज़ दीवार से टकरा कर उसतक लौटती है । उसकी आवाज़ के अलावा अब और कोई आवाज़ नहीं है । कमरे के फर्श पर नमी है, मिट्टी है । हेम्ब्रम के तलुये पसीजते हैं । उसके जूते बाहर किसी मेज़ पर रखे हैं । राजमंगल सिंह का चेहरा खिड़की से झाँकता है । जूतों के भीतर एक परचा मिला है जिसपर लिखा है 
वो शिनाईद 亲爱的 (मेरी प्यारी )
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१ नोट मार्क्स ऐंड एंगल्स की द कम्यूनिस्ट मैंनीफेस्टो
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लड़की को मुगालते हैं कि वो चित्रकार है । कुछ नाम वो धड़ल्ले से बोलती है , फ्रीदा , गोया,  क्लीम्ट और गोगां और रेनोआ, मतीज़ , मुंच और पटवर्धन और सूज़ा, रज़ा, वाईयेथ । जैसे लड़का कवियों के नाम और संगीतकारों के । उन्हें लगता है इस दुनिया में पहली दफा कला उन्होंने ही इज़ाद की है और प्यार भी । लड़की विदेशी फिल्में देखकर प्यार करना सीखी है । अपने शरीर को उन नायिकाओं की तरह बरतना और चेहरे की भंगिमा और चूमने का तरीका और प्यार में उन्माद और उसके बाद का कज़ुअल्नेस ..सब उसने फिल्मों से सीखा है । 
 
लड़का प्यार करने के बाद रुकता नहीं । अपने कपड़े किसी धड़फड़ी में पहनता है , एक सिगरेट तेज़ी से खत्म करता है और फिर जूते पहनकर निकल जाता है । लड़की कुहनी के बल उठंग कर उसे देखती है और उसके चले जाने के बाद एक लम्बी अंगड़ाई लेती सोचती है , अगर माँ को पता चला तो क्या होगा । फिर बेहोश नींद में डूबती सपने देखती है ।
 
लड़का अपने एक कमरे के घर में लौटता रात के बारह बजे माँ को फोन लगाता है , 
माँ सोई तो नहीं थी न ? 
माँ उनींदी आवाज़ में कहती है , नहीं तो , बता सब ठीक तो ? लड़का चहकती आवाज़ में आलस घोल कर कहता है, माँ अभी लौटा हूँ काम से । 
लड़का अखबार में नौकरी करता है । रिपोर्टिंग । उसे कई बार बाहर जाना पड़ता है कई कई दिन के लिये ।  
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हज़ारीबाग के किसी छोटे से गाँव में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ की खबर है । लाल भात और सूखी मिर्च और बाँस के अचार के साथ कौर गटकते लड़का सोचता है क्यों आया मैं ? इसलिये कि मेरे जन्म के पहले मेरे दादा इस ज़मीन को छोड़ गये थे ? कि माँ कभी किसी लाल बँगले की बात करती थी । लाल दीवार वाला बँगला , हरी खिड़कियों वाला बँगला , मालती लता और चँपा के फूल वाला बँगला । चिरमिर करता फाटक । और बेतरतीब उपेक्षित जँगली बढ़ आये वनस्पतियों से घिरा भुतहा बँगला ? टूटी खिड़की के झूलते पल्ले, आँगन के टूटे दरके दीवार की ओट में कूँये का झाड़ भरा जगत ? तस्वीर में माँ सर ढ्के सीधा पल्ला किये ज़रा सा मुस्काती आभास लिये चेहरे से एक तरफ देखती है । चेहरा ज़्यादा नहीं दिखता है । चेहरा है का आभास है । ये तो शरीर की बुनावट और उसके सतर कमसिन खड़े होने की भँगिमा है जिससे पता चलता है कि मुस्कुराती है । कि उम्र कम है , कि अभी अभी विवाह हुआ है , कि अब तक इस घर में मेहमान हूँ का ही भाव है , कि अभी बड़े दिन निकालने हैं , कि जीवन ,ओह जाने कैसा जीवन बीतेगा , कठोर कठिन मृदुल सरल । लेकिन अभी तस्वीर है , सफेद छापे की साड़ी और छाया में घिरा चेहरा और पीछे लाल बँगला । लाल बँगले की खिड़की , खिड़की से झूलता पर्दा और पर्दे के पीछे का जाने क्या संसार जो अब किसी को याद नहीं । पर था तो ज़रूर वो सँसार । चाहे याद न हो किसी को , चाहे उसे भोगने जीने वाले गुज़र गये सब , पर था तो सब , उतना ही सच जैसे अब ये आज का पल , ये चमकती धूप , ये जीभ पर दिन का स्वाद , ये पीठ पर कमीज़ का स्पर्श , ये साँस ठंडी हवा में , ये चीकू के पेड़ , ये गुज़रते आदिवासी बच्चे, ये कोलतार की सड़क , ये आँख भर भर कर सब देखना , ऐसा ही सच , विश्वास नहीं होता पर हुआ होगा तब भी ऐसा ही एक दिन प्रतिदिन. तस्वीर में जितना दिखता उससे कहीं कहीं ज़्यादा साबुत समूचा सँसार। 
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शैतान की औलाद , साले सूअर राजमंगल सिंह की आवाज़ में गुस्सा और नफरत लिथड़ रहा है । बेल्ट वापस पैंट पर कसते हाँफते लौटते हैं । अब ऐसी चीज़ें आसानी से होती नहीं । पहले वाली बात नहीं रही । उम्र निकल रही है और साले सब कैदी ऐसे ही चिमड़ । आत्मा इतने मारपीट के कोटे से थक चुकी है । बान सिंह शीशे के मोटे गिलास में कड़क चाय रख जाता है । कमरे की दीवार पर खून के सूखे भूरे चकत्ते हैं । कुछ ताज़े भी । हेम्ब्रम की पीठ पर आग की लहर है । चेहरा मिट्टी में धँसा । दीवार के कोने में दो तिलचट्टे सूँड़ निकाले थाह रहे हैं । छत से छिपकली उलटी देखती है फर्श पर गिरे आदमी को । पेशाब की तीखी दुर्गँध ज़मीन पर भारी गिरी पड़ी है । हेम्ब्रम का पैंट गीला है । सिर्फ एक पल का सूखा पन , सिर्फ एक पल का सुथरापन , सिर्फ एक पल का होना बिना किसी दर्द के । सिर्फ एक बार होना अपने उस सँसार में जहाँ होना ऐसा आसान है जैसे पूरी दुनिया में अब तक उसका होना होता आया है । अपने घर की महफूज़ दुनिया । तिलचट्टे उसकी टाँग पर चढ़ कर फुरफुरा कर भागते हैं , पूरे शरीर पर । जुगुप्सा की एक लहर और हेम्ब्रम चीखता है , पहली बार इतनी देर में , और चीखता जाता है , बिना रुके । बान सिंह झाँकता है , तिलचट्टों की एक फौज हेम्ब्रम की पीठ और गर्दन पर सवार है । 
 
साहब , कैदी बेहोश है .. बान सिंह साहब को इत्तिला देता है ।
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मुठभेड़ में चार कॉंस्टेबल और एक सब इंस्पेक्टर घायल हुये हैं । दो गँभीर रूप से । एक की हालत अब तब है । सब इंस्पेक्टर टोपनो के सर पर चोट है । झुमरा में रात के वक्त अम्बुश हुआ । कितने नक्सली बरबाद हुये गिनती नहीं । पर लाश एक की भी नहीं मिली । जाने कैसे रात के अँधेरे में मरे साथियों को लेकर निकल भागे । बारिश हो रही थी । साल के पत्तों से मोटी बूँदे लगातार गिर रही थीं । जैसे नदी बह रही हो । पानी बहने की आवाज़ । मिट्टी में पनाले बह रह थे । लाल मिट्टी का कादो । अँधेरे में हाथ को हाथ न्हीं सूझता । पुलीस जीप कीचड़ में फँस गई थी । पिछला चक्का घूम घूम कर कीचड़ फेंकता , अगला एक इंच टस से मस नहीं । अगले दिन कुमुक आई थी । राजमंगल सिंह खुद । फिर गाँव गाँव छापा । पुलिस को मार कर साले बचेंगे ? राज मंगल सिंह दहाड़ते । एस पी के मुरुगन और डीआईजी नियाज़ खान दौरे पर आये थे । मंत्रालय में रपट दाखिल करनी थी । हाई पावर कमिटी बनी थी । अखबार में हेडलाईन । आई जी साहब ने प्रेस मीट में ऐलान किया था , लॉ एंड ऑर्डर सब महीने भर में ठीक करेंगे । ऐसा करने के हफ्ते भर बाद ही , रेल लाईन पर बारूद मिला था । वो तो भला हुआ कि मेंटेनेंस स्टाफ की नज़र पड़ गई । मूरी एक्स्प्रेस के निकलने का टाईम था । ट्रेन रोका गया । दुर्घटना टाली गई । राज मंगल सिंह को आजकल टाडा फाडा सबसे ज्यादा पावर था । हवालात खच खच भरा था । लेकिन ऐसा कैदी ? राजमंगल सिंह का दिमाग चकरा गया था । पाकिस्तानी चीनी जासूस ? कोई मुखबिर ? 
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लड़की लड़के को फोन करती है । लड़का फोन उठाता नहीं । उठाता भी है तो दो लाईन बोल कर हड़बड़ी में फोन काट देता है । जबकि ऐसी हड़बड़ी का कोई सबब नहीं । यहाँ कोई नई खबर नहीं । वही नक्सली , वही पुलिस एक्सेस की कहानी , वही हिंसा , वही छापामार कार्यवाई । लड़का तीन चार रोज़ दो एक गाँव घूम चुका है । आदिवासी औरतों की क्लीशेड तस्वीरें , नंग धड़ंग बच्चे , महुआ के नशे में अधनींदे बूढ़े , हताशा , निराशा , गरीबी , तकलीफ । हड्डीहा मवेशी , सुनसान गाँव में चौंकती घूमती मुर्गियाँ , किसी मिट्टी के झोंपड़े से ज़रा सा बाहर देखती कोई जवान औरत । सब बाहर की दुनिया । उनके भीतर की दुनिया की पैठ का अधिकार उसे नहीं है । कोशिश कर के हार चुका है । 
कॉमरेड कामरेड , पुकारता है , किसी को अचक्के कुछ बोलवा दे 
उसे देखते हैं, सब , निर्विकार .. एक औरत आती है हँसती , अपने बच्चे को आगे ठेलती , अखबार बाबू इसका फोटो खींच दो न हफ्ता बीत चुका है । आज एक नया कोई गाँव । जँगल के बहुत भीतर । सड़क नहीं है । बहुत पैदल चलना पड़ा है । पाँच घँटे लगातार । फिर साँझ ढलते , जँगल के बीचो बीच साफ की हुई जगह में आठ दस झोपड़ी बस । लड़का बैठ जाता है । जूते उतारता है । पैर फूल गये हैं । उसको साथ लाने वाला रमेसर माँझी हँसता है , बाबू थक गये । 
 
रात में मड़गिला भात और आलू का तरकारी खा कर लड़का निढाल गिरता है । झोपड़ी का एक कोना है । बदबूदार कथरी है और वैसा ही महकता कँबल । लेकिन थकन में लड़के कुछ नहीं महसूसता । रात में किसी वक्त नींद खुलती है । बगल के कमरे के दरवाज़े पर खड़ी समरी का शरीर रात के अँधेरे में घुल जाता है । 
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कितने सौ बरस पहले ऐसे ही किसी सर्द रात में औरत का शरीर उस पुरुष का हुआ था । ऐसे ही किसी रात में । हेम्ब्रम क्या जानता । लड़का देखता है , घर की बूढ़ी , जर्जर बूढ़ी झुअरझुर झुकी , जाने कब का पिटारा निकाले उसके सामने रखती है । लड़का हकबक उजबक देखता है । बूढ़ी के चेहरे पर उसके नक्श ऐसे बैठे हैं जैसे द्राविडियन नस्ल पर किसी ने आर्यन नस्ल की छाप मार दी हो । उसके मोटे अनगढ़ चेहरे पर नुकीली सतर नाक और हरी भूरी आँखें । गज़ब । लड़के को याद आता है बादेन पॉवेल पर देखी गई डॉक्यूमेंटरी । बादेन जब युवा थे तब उनके घुँघराले बाल उनकी शक्ल अफ्रीकी दिखती पर एकदम बच्चे में और बाद में उम्र निकल जाने पर हलकी भूरी आँखें और पीली पतली त्वचा पर नफासत से जड़े उनके नक्श उनको एकदम अलग दिखाते । जैसे एक ही जीवन में रक्त और नस्ल के मिश्रण का खेल आँख मिचौनी खेलता अपने को साबित करता हो । ये बूढ़ी भी तो उसी का नमूना है और मैं भी तो । लड़का धीमे से साँस भरते रुकता है एकबार भीतर । पिटारे में जीर्ण दस्तावेज हैं , कुछ गेरू और टेसू से रंगी चित्रकारी है और अनाम भाषा में लिखी जाने किसकी कहानी है । थरथराते हाथों से लड़का उलट पुलट करता ढह जाता है । माँ के कमरे में उनके बक्से में ऐसा ही तो कुछ । बूढ़ी उसके चेहरे को छूती कुछ कहती है । बाहर तेज़ धूप है । बकरियों का मिमियाना और मुर्गियों की आवाज़ लगातार सन्नाटे को चीरती निकलती है । 
 
बूढ़ी उसे निशब्द पिटारा थमाती है । समरी अटक अटक कर बताती है , पुरखे में कोई मुसाफिर जो आया था , रहा कुछ दिन फिर गया । एक को ले गया एक कोई रह गया । हमारे भीतर कितने जन रहते हैं जाने कौन उनमें से फिर हममें ज़्यादा प्रगट हो जाता है । समरी का चेहरा धुँधला कर विलीन हो जाता है । लड़का अपने हाथ देखता है । उनकी त्वचा की बारीक लकीरों को देखता है । 
रात के अँधेरे में , घुप्प अँधेरे में जाने किस बेचैनी में नींद के टूटने के इंतज़ार में करवट बदलता सोचता है , माँ । और सोचता है पिता । कोई चिट्ठी , एक मेल कुछ तस्वीरें । मेरा खून लाल ही है लाल । छाती में जली आग फिर सब जला डालती है , सब राख । तेज़ आवाज़ और सीटी और भागते पैरों के शोरगुल में कोई झकझोकरता उसे उठाता लगभग ठेलता बाहर कर देता है । आँखों पर तेज़ रौशनी पड़ती है , फिर मिचमिचाकर अँधेरे में गिर पड़ता है । दौड़ता दौड़ता दौड़ता । जाने क्यों भागता ? पीछे कुत्तों का शोर है । छाती में हाँफ भरती है , जैसे अब फट जायेगा जिगर । कोई फुसफुसाता है , हेम्ब्रम हेम्ब्रम ? 
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लड़की की आँखें रो रो कर सूज गई हैं । बार बार कहती है , मुझे कुछ नहीं मालूम , कुछ नहीं मालूम । पुलिस पिछले तीन दिन से उससे पूछताछ कर रही है । लड़का किससे मिलता था , कब मिलता था , उसके फोन पर किसके कॉल आते थे ? अंडरग्राउंड के उसके साथियों का नाम , नेट पर उसके कॉंटैक्ट्स , उसका लैपटॉप , उसके कमरे की तलाशी , सब पुलिस ने ज़ब्त कर लिया है । लड़की का पूरा दिन हवालात में बीतता है । जिस अखबार में लड़का काम करता था उसके मालिक और संपादक ने बयान दिया है कि उन्हें लड़के के ऐंटीसीडेंट्स के बारे में कोई खबर नहीं थी । ये भी कि हज़ारीबाग में उसे कोई सुराग कोई इंवेस्टिगेटिव कहानी के लिये भेजा नहीं गया था । कि लड़का पन्द्रह दिन से बिना खबर दफ्तर से गायब था । 
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अखबार में तीन दिन पहले पन्ने के बाद खबर चौथे पन्ने पर उतर आई थी । जबकि हज़ारीबाग टाईम्स में अब भी पहले पन्ने के दाहिने कोने पर जमी थी । तस्वीर में लड़की दुपट्टे से अपना चेहरा छिपाये आँखों पर गॉगल्स चढ़ाये दिखती जिसके नीचे शीर्षक रहता हेम्ब्रम की प्रेमिका ने इंकार किया नक्सली होना । या फिर नक्सली प्रेमिका , या क्राईम और इश्क । इस किस्म के चलताउ अश्लील वल्गर खबर ।
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मरते वक्त लड़का क्या सोचता रहा , ये कि मैं कहीं भी चला जाऊँ , कितना भी पढ लूँ रहूँगा वही आदिवासी जिसे कुत्ते की मौत मरना है ? अपनी पीली त्वचा और गुँघर बाल और चिपटे नाक के बावज़ूद अनिल हेम्ब्रम हमेशा साला हेम्ब्रम ही रहेगा । मिट्टी में खून सना चेहरा धीरे धीरे रिस जाता है । उसका बदन गोलियों से चिंथा बदन एकदन हल्का हो जाता है । राजमंगल सिंह मुँह से थूक पोछते कहते हैं , जाने क्या गुप्त दस्तावेज़ है , अगले सालों का नक्सली खाका .. नियाज़ खान का फोन आता है , शाबाश । प्रेस कॉंफरेंस में हॉल खचाखच भरा है । मुरुगन साहब माईक पर बुलंद आवाज़ में ऐलान कर रहे हैं , पुलिस महकमे के अगले 
एक्शन प्लान का ।
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रात के अँधेरे में दूर कहीं कोई दिया टिमटिमाता है । लौ काँपती थरथराती रौशनी का पेंडुलम बनाती है । जैसे बियाबान में एक टुकड़ा खुशी । समय , काल एक क्षण में सिकुड़ता फिर फैलता है , इतना विस्तार कि उसका छोर अकूल हो जाता है । उसकी परछाईं गिरती है हज़ारों साल पीछे , हज़ारों साल आगे । समय का क्रूर निर्मम खेल । रेपीटिशन ऑफ ऑप्रेशन , बार बार वही और उस सबके बीच किसी नन्हें अंतराल में मृदुता और कमनीयता के मुट्ठी भर फूल । लौटना फिर बार बार उस फूल की ओर जैसे लौटता है भौंरा फूल पर और लौटती है नदी समंदर को और लौटती है रात अँधेरे में , नफरत और घृणा के बीच जैसे लौटता है मन प्यार को , बस ठीक वैसे ही लौटता है समय अपने होने में ।
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लड़की और लड़के के अंतरंग पल अब भी ज़िंदा हैं , ताजे सेमल फूल । झूठ और फरेब की पहचानी ऊबाऊ कहानियाँ कितनी रोज़मर्रा हैं । अखबार के हेडलाईंस । लड़के को याद आता है जँगल में बीचो बीच उस गाँव में , रात के गाढ़े अँधेरे में भात खाना । अँधेरे में स्वाद गहरा गया था कैसे । लड़की को, कितने भी शब्द इस्तेमाल कर ले, उस रात की कहानी समूचेपन में सुना नहीं पाता । हर बार की कहन में कोई एक दृश्य छूट जाता है शब्दों की ज़द से । उसके छूटे की कहानी ज़्यादा भावमय है, ज़्यादा गहरी है , ज़्यादा जटिल है । जैसे सिनेमा में देखे गये दृश्य से ज़्यादा उनका न देखा न रखा गया फ्रेम मन में अटका हो । लड़के के शब्द हार जाते हैं । मेज़ पर कागज़ फैलाता उँगलियों से सीटता दिखाता है । लड़की दम साधे देखती है । कौन अनजान भाषा । लड़की को लगता है लड़के के लौटने के बाद उनके बीच की हवा बदल गई है । उसमें गहरे गोल कोने उग आये हैं, पूरी गोलाई लिये जिसमें सब भरा भरा है । उसे लगता है उनके प्यार की उम्र अचानक बढ़ आई है, इस बढ़त में बीते दिनों का भार है । लड़की मुड़ कर आईने में देखती है । दो लोग आमने सामने बैठे हैं । लड़का इमरे कर्तेश की कहानी कहता है । कैम्प से लौट आने के बाद उसी विभत्स दुनिया में अपने संदर्भ की तलाश करता जुर्का उसे याद आता है । यंत्रणा के बीच एक स्पेस क्रियेट करना चाहे वो स्पेस काल्पनिक ही क्यों न हो जिसपर कील की तरह आप अपनी सैनिटी टाँग सकें, जैसे उस समय को याद करना ही ज़िंदा होने का सबूत हो, अपने रेलेवेंस को साबित करने का औज़ार ।
लड़की पूछती है, फिर हेम्ब्रम ? उसका क्या हुआ ? लड़का उसाँसता धीमे से कहता है, मर गया । उसका मर जाना ही बेहतर था । उसके भीतर खतरनाक विचार थे । क्लासलेस सोसाईटी की बात करता था, कहता था सोसाईटी वुड भी अ कोऑपरेटिव युनियन ऑफ फ्री प्रोड्यूसर्स, अलोकेशन ऑफ रिसोर्सेज़ की बात करता था, बाकुनिन और फूरियर को कोट करता था, उसका मर जाना ही बेहतर था । ऐसे विचार और ऐसी सोच के साथ इस अन्याय भरी दुनिया में, इस घृणा और हिंसा और रिडिक्यूल के बीच मर जाना ही अच्छा था । 
 
लड़की हाथ बढ़ा कर लड़के को छूती है सांत्वना में । आईने में प्रतिबिम्ब धुँधलाता गायब होता है अस्पष्ट । 
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कुछ सौ साल पहले कोई पुरुष किसी स्त्री को दुलारता है । उनके गुण सूत्र खत्म होते हैं आज , बस ऐसे ही जैसे अनजाने जूतों के नीचे बेध्यानी से मसली गई एक सिगरेट की अदना सी टोंटी ।