शारुख शारुख ! कैसे हो शारुख

(From “पहर दोपहर ठुमरी”)
Author’s introduction of the short story:
 
बेड नम्बर बयालिस , न्यूरो डिपेंडेंस वार्ड 
 
राफेल राफेल …..
आवाज़ खोज रही थी । दोपहर की सुन सन्नाट गलियों में गोलगाल घूम रही थी। कभी पास आ जाती तो तेज़ हो जाती। मद्धम होती तो राफेल समझ जाता दूर हो गई। हथेली में चार चमकीले पत्थर पसीने से चमकते थे जैसे उस रात पेड़ पर बैठे उल्लू की आँखें।
 

हथेलियों को हथेलियों में थामे कलाईयों को मोड़ते हुये जोएल सोचता है , बोलेंगे कभी ? पहचानेंगे कभी ? कलाईयों के बाद कुहनी फिर बाँह। उसके बाद एड़ियाँ, घुटने। हर एक घँटे एक्सरसाईज़ करायें । जोड़ लचीले रहें बाद में आसानी होगी । घड़ी देखता है जोएल। ठीक ग्यारह बज कर दस मिनट पर एक्सरसाईज़ का दूसरा दौर। अभी नेब्यूलाईज़र लगेगा फिर सक्शन कर के छाती पर जमा कफ निकाला जायेगा । सिस्टर जब पाईप डालती है मुँह में तो दाँत से पकड़ लेते हैं। गाल थपथपा कर सिस्टर चिल्लाती है, बाबा छोड़ो । तब जोएल की इच्छा होती है ठीक वैसे ही पकड़ कर सिस्टर को झकझोर दे । उनकी तकलीफ देखकर हट जाता है जैसे उसकी छाती तक पाईप रेंग गया हो । 

बगल वाले बेड पर लेटा बच्चा शारुख अपने पिता को बेहोशी के आलम में अंकवार भर लेता है। उसकी बैंडेज बँधी मुट्ठियाँ पिता के पीठ पर बेचैन थरथराती हैं। डी वार्ड में हर वक्त मरघट शाँति रहती है। सारे पेशेंट नीम बेहोशी में । अटेंडेंट्स थके हारे निढाल क्लांत । बाहर रुलाई की महीन रेखा उठती गिरती विलीन होती है। शायद कार्डियाक वार्ड से आती है । बीमारी की महक जैसे ज़्यादा पके फल की महक नाक में भर जाती है। कुछ कुछ सड़े हुये आम की महक जैसे। 
Painting by Pratyaksha
वाईटबोर्ड पर जोएल पढ़ता है ।
 

नाम राफेल तिग्गा 

डेट ऑफ एडमिशन चौदह जनवरी दो हज़ार आठ 
कॉज़ ब्रेन प्लस हाईपोथैल्मस कंट्यूशन 
प्रोसीजर फ्रांटल क्रेनियोलजी
मेल कैथ /फॉलीज़ चौदह जनवरी 
डाएट … 
राईलीज़ ट्यूब…
 
नीचे नीचे और नीचे ऐसे ही कितने अजाने मेडिकल टर्म्ज़… सारे शब्द गडमड होते हैं । माँ कहती है मैं आऊँगी । आकर भी क्या करेगी । संस्था वाले कहते हैं सात लाख खर्च हो गये । एक ही आदमी पर कितना खर्च। और भी तो हैं मदद के लिये… बेबस बेचैन बेसहारा । पिता अनदेखी आँखों से देखते हैं । कुछ भी नहीं देखते हैं। कहाँ चले गये तुम ? किस दुनिया में ? जहाँ मेरा रास्ता नहीं, जहाँ मेरी दरकार नहीं, घुसपैठ नहीं ? हमेशा अपनी की । अंत तक। और मैं अब क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ, कहाँ इन्हें ले जाऊँ ..उस छोटे से बीहड़ जसपुर के पास जंगल वाले गाँव में , उस दो एकड़ के खेत में ? उस सरकारी लावारिस से बे-डॉक्टर अस्पताल में ? कहाँ ले जाऊँ । अबकी बार जोएल देखता है खिड़की के बाहर अनदेखी आँखों से । कुछ भी नहीं देखता । 
 
पोखर पर लिपटती शाख से पानी में छपाक कूदते लहर बनाता तैरता है राफेल । मछली जैसा । पानी में काला चिकना बदन छहलता है। 
राफेल, राफेल 
आवाज़ कभी पीछा नहीं छोड़ती । सटती चिपकती है । सर झटकता है एक बार ज़ोर से । ओह अभी नहीं, अभी तो बिलकुल नहीं । 
 
सिस्टर सिस्टर । 
जोएल उत्तेजना से सिहर रहा है । अभी इन्होंने अपना सर हिलाया । मैंने देखा, अभी देखा । आप भी देखना सिस्टर । 
 
बाबा बाबा , मैं जोएल । मुझे सुनते हो तो अपना सर हिलाओ । जोएल उनको पकड़ कर हिला रहा है । दो मिनट इंतज़ार कर सिस्टर बेजार लौट जाती है कुर्सी पर । 
 
खिड़की के सिल पर गिलहरी भौंचक इस शोर से थमती ठिठकती है फिर पूँछ उठा विलीन हो जाती है। 
 
सिस्टर बेड नम्बर चौआलिस पर झुकी पुकार रही है, 
शारुख शारुख कैसे हो शारुख ?
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उस सपने से बाहर कितनी बार तो निकला होगा नहीं ? राफेल खुद से पूछता है । गर्दन खुजलाते सिर झुकाये झेंपते हुये हर बार । हर बार जब मरिया पूछती है , “हाँ रे राफेल, ले चलेगा न मुझे रायपुर ?“ 
 
मरिया की काली पुतली कैसी नाचती है तब गोल गोल फिरकी । उसकी हँसी भी सोंधी सोंधी है मिट्टी जैसी , उस नोनी के खट्टे साग जैसी । उसके बदन पर नमक का पानी चढ़ा है तभी गाँव ज्वार के लड़के आगे पीछे होते हैं उसके । राफेल दूर खड़ा देखता है । खेत से लगे पोखर पर चित्त लेटता धूप सेंकता है । गाँव के बाहरी सरहद पर मिशनरी स्कूल के वृहत हाते के दीवार के साये में सपने देखता है । सिस्टर स्टेला ने वादा किया है , भेजेंगी रायपुर । 
 
बरमू ओराँव मुँह बिचकाता है , 
 
“सब किरिस्तानों के मजे हैं । मिशन में पकड़ लो नौकरी । फिर हम कहाँ जायें ? पाहन ने मुर्गी शराब माँगा है । फिर करेगा झाड़ फूँक । कहता है सेवा करो फिर भगती सिखायेंगे ।“ 
“तुम साले मजे करो मजे ।“फिर आँख मार कहता है ।“
“तेरी तो किस्मत चमकी है, मरिया भी तो गिरती है तेरे गोद में ।“  
राफेल न तो गुस्सा होता है न धीरज खोता है । 
“क्या रे बरमू , मुझसे डाह ?“ 
 
मिशन के हाते के भीतर से चारों ऑल्सेशियन कुत्ते एक साथ भौंकते हैं । अमरूद के पेड़ के नीचे उनके लिये रोज़ाना खस्सी का मीट धराता है । खुली जीप में सागू तिर्की शहर जाता है । हर बार गाँव के मोड़ पर हॉर्न बजाता है । कोई सवारी मिल जाये तो शाम के दारू का इंतज़ाम हो जाये । फादर जॉर्ज जब साथ होते हैं तब चुप गाड़ी चलाता है । तब फादर जॉर्ज बोलते हैं लगातार 
 
प्रभू यीशू मसीह का नाम पाँच मिनट में दस बार लेते हैं । साथ में गिडन बाईबल रखते हैं । सफेद चोगे के विशाल पॉकेट में और पता नहीं क्या क्या । सिगरेट, कलम, घड़ी, छोटा नोटबुक, पैसा रखने वाला काला चमड़े का पर्स । सागू चौकन्ना रहता है । क्या पता कब फादर एक सिगरेट ही बढ़ा दें, तब उसका एक हाथ सिगरेट में फँसेगा । उस एक फँसे हाथ की उम्मीद में सागू हर वक्त प्रैक्टिस करता है एक हाथ से जीप चलाने का । फादर कभी कभी गाँव में जीप रुकवा कर राफेल को बिठा लेते हैं 
 
मरिया बोलती है ,”शहर जायेगा तो मेरे लिये क्या लायेगा रे ।”
“तू बोल न क्या चाहती तू मरिया “, राफेल की आँख में समन्दर लहराता । लगता कि अपनी शक्ति भर हुमस कर क्या कुछ नहीं कर दे उसके लिये । रात जब बेला फूल महकता है तब बाँसुरी की तान धरे राफेल चाँद निहारता है । चाँद तब पिघल कर उसके नब्ज़ में धड़कता है ठीक वैसे जैसे मारिया की धड़कन उसके छाती में हुम्म हुम्म करती है । बदन से कोई चीज़ निकलती हुई आत्मा में समा जाती है । तब लगता है रात बीते ही न । बस ऐसे ही कसक की टीस लिये आत्मा की गहराई में अपने होने की थाप देती रहे ।
 
फादर जॉर्ज गिरजा में सर्मन दे रहे हैं । इतवार को भीड़ जुटती है । तब नूह की और जोशुआ की और मोसेस की कहानी सुनाते हैं । प्रभु यीशु हमारा गड़रिया है हम उसकी भेड़ । ये सुनते ही पॉल तिग्गा की बेटी सुसान मुँह ढापे फिक फिक हँसती है । 
“अच्छा कहो तो ? हम आदमी कि भेड़ ?”
उसकी माँ आँखें तरेरकर हड़काती है , “चुप्प ! “ 
फिर धीरे से खींचकर सटा लेती है । पिछले छह महीनों में कितना बीमार रही । छौंड़ी एकदम अदबदा कर हाथ पैर मरोड़ दे, आँखें उलट दे, बदन तरेर दे । ऐसा लगता कि अब प्राण छूटे । 
ओझा भगत के पास जायें ?”  
मरद कहता,  “पागल हुई रे का ? फादर सुनेगा तो गुस्सा करेगा । मिशन का छोटा अस्पताल में लाओ बोलेगा ।“
पर अस्पताल के नाम पर पॉल भी हिचकिचा जाता । अच्छा सुन एक बार और भगत ने जो बोला सो करके देखते हैं । चल तेरी बात मान लेते हैं जैसा कुछ बोलकर बीबी से बड़प्पन दिखाता अपने मन को संभालता  ओझा से मिलने निकल जाता ।
 
रात जंगल के छोर पर भगत अलाव जलाकर मुर्गी की बलि देता है । खप्पड़ में शराब डालकर मरान बुरु को बुलाता है । सुसान माँ की गोद में चिपक आँखें फाड़ देखती है । भगत मोरपँख से सुसान का शरीर छूता है, झाड़ता है । मंत्र पढ़ता है । उसकी आँखें सुर्ख लाल हैं । जंगल की अँधियारी रात में हवा हू हू करती है । भगत महुआ के नशे में झूमता है । पॉल कसमसाता फादर को याद करता है फिर तुरत सर झटकता है । सीने पर क्रूस का निशान बनाकर मन ही मन यीसु से क्षमा माँगता है फिर अपने बाबू को याद करता है । बचपन में बाबू ऐसे ही भगत के पास ले गया था जब साँप काटा था । आधा पैर नीला पड़ गया था और माँ ऐसे रोती थी कि अब बाबू मोर बचबै ना । बाद में कितने दिन बाबू हड़िया पी के नशे में बोलता था, “दस मुर्गी बलि दी थी रे तब तू बचा ।“ 
 
मैं बचा अब देवता मेरी बेटी को बचायेगा । हे देवता मुझे तेरे शरण से दूर जाने का श्राप मेरी बेटी को मत देना । ऐसा मन में घुमड़ता है । पाँव में बड़ा हँसुआ फसाये भगत मुर्गी का सर रेतता है । मुर्गी के चीत्कार और टपकते लहू से सुसान डर कर माँ के गोद में लुढ़क जाती है । बुधनी उसके काँपते शरीर को समेटते अँधेरे को देखती है , जलते अलाव को देखती है । सर कटी मुर्गी अब भी मिट्टी में तड़फड़ा रही है ।
 
“जा , अब बेटी ठीक हो जायेगी “ भगत की आँख में आग की लपट जलती है ।“तीन दिन छुछुंदर का कलेजी मसाला डाल कर कल पका और खिला इसे, ठीक हो जायेगी ।“
 
राफेल का मन अजबज होता है । हर बार घर में झगड़ा होता है । जाने कितनी मुर्गी जंगल के आग में पकी । जाने कितनी लड़ाईयाँ घर में हुईं । फिर फादर को राफेल ने बताया । उस दिन फादर जबरजस्ती सुसान को अस्पताल ले गया । बोला जोंक है क्या है, तीन दिन खाना होगा । दवाई चली । बुधनी चुपके से छुछुंदर की कलेजी भी खूब तेल मसाला डालकर पकाती रही । 
सुसान कहती , ”माँ और दे न, बहुत स्वाद पकाया है “ 
अब फादर के अस्पताल की दवाई का असर कि भगत का इलाज, छौंड़ी ठीक है तब से । बुधनी बाहर हवा में देखती है, आसमान देखती है । यीसु और बरान मुरु दोनों से नाता जोड़ना ही सही है । अपना देवता कहीं छोड़ा जाता है क्या ? पॉल झिड़कता है उसे । 
“अरे सब जंगली देवता है रे ।“रोज़ फादर से सुनकर आता है । “अंग्रेज़ी दवा और अंग्रेज़ी देवता ही ठीक है । पिछ्ले इतवार उल्टी दस्त तो उसी अंग्रेज़ी दवा से सही हुआ कि नहीं । तेरे फेर में रे बुधनी फिर गया मैं उस जाहिल भगत के पास“। बुधनी मन ही मन माफी माँगती है , “बरान इसे माफ कर , इसकी मति मारी गई है ।“ 
 
कल ही भगत को बत्तख के चार अँडे छिपाके रखा है सो चढ़ा आयेगी ।
राफेल अपने तीन एकड़ के खेत में सुबह सवेरे सूरज उगने के पहले, पहुँच जाता है । मिशन के स्कूल में दसवीं तक पढाई कर ली । मैटिक पास किया । अब खेत में जोताई नहीं की जाती । उसकी आँखों में इतना सपना है कि रात रात नींद नहीं आती । माँ बाप भाई बहन कुछ नहीं सोहाता । बस मरिया सोहाती है । मरिया सोहाती रहे इसके लिये शहर जाना होगा, नौकरी पकड़नी होगी । फादर के कमरे में घुसते ही उसकी आँखें फट खुल जाती हैं, जैसे शहर घुस आया है इस गाँव के बाहर मिशन के अस्पताल में । और शहर आते ही जैसे सपना हाथ बढ़ाओ तो छू जायेगा जितना निकट हो जाता है । ऐसे समय में छाती कितनी तेज़ तेज़ धड़कती है । दिल फट जाता है, साँस रुक जाती है । सब शाम को मरिया को बताऊँगा सोचता राफेल बाहर बोगनविलिया से लदे बरामदे में , कुचिया की क्यारियों के बायीं ओर बैठ जाता है । 
 
सामने दवाईयों वाले डिस्पेंसरी के गलियारे को उर्सुला लम्बे डंडे से पोछा लगा रही है । तीन बार एक तरफ फिर तीन बार दूसरी तरफ । फिर रुक कर साँस भरेगी फिर पोछा लगाते कुछ गीत गुनगुनायेगी । ठीक है उसके गुनगुनाने के दिन हैं , राफेल मतमरु सोचता है । उर्सुला की अभी अभी शादी हुई है । मंगरू जो स्कूल का बस चलाता है उससे । मंगरू लम्बा चौड़ा जवान है । गाँव से सटे बहती है नदी, इच्छामनी नदी उसका पाट , बरसाती चौड़ा पाट एक साँस में तैर कर पार करने का गौरव हासिल है उसे । तीर से बड़ी से बड़ी मछली मारने का भी । मटका भर महुआ पीने का भी और कढ़ाह भर भुना तीतर खाने का भी । 
 
लेकिन राफेल स्कूलबस नहीं चलाना चाहता । गेट पर दरबानी नहीं करना चाहता । सिस्टर लोग के हॉस्टेल में कुक बनने का भी नहीं, न माली बनने का, न ऑफिस में चाय पानी करने का । उसका सपना और बड़ा है, बहुत बड़ा । सौ दो सौ कोस दूर जो एक और गाँव है वहाँ का रमेसर जैसा । जो मिशन स्कूल में पढ़ पढ़ कर शहर गया और पढ़ाई की फिर कोई बहुत बड़ी परीक्षा पास की । गाँव में कलक्टर बन कर लौटा था । खुली जीप में, काला चश्मा लगाये, रंगीन बुश्शर्ट पहने । दौरे पर आया था तब गाँव उमड़ा था उसे देखने । हमारे बीच से उठकर बड़ा साहब बन गया । फादर जॉर्ज तक उसके सामने खड़े रहे थे । ऐसा बनना है ऐसा । साँस उठकर राफेल के गले तक पहुँचती है, फिर माथे के बीचोबीच स्थिर हो जाती है । बरामदे पर गुनगुनी धूप में राफेल फादर का इंतज़ार करते नींद की बेहोशी में डूबता है । 
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जोएल देखता है उस लड़की को जो अपने भाई का हाथ पकड़े बैठती है लगातार । वार्ड में किसी से बात नहीं करती । बस सबको खाली आँखों से ताकती है । सिस्टर आती है तो बेआवाज़ हट जाती है । सिस्टर मुस्तैदी से एक एक करके ब्लड प्रेशर और टेम्प्रेचर नापती है, करवट बदलवाती है । लड़की इस बीच खिड़की के पास जाकर बाहर देखती है । एक दिन जोएल ने ध्यान दिया था कि खिड़की के पास खड़ी उसकी पीठ बेआवाज़ रुलाई में हिल रही है । तब से जब भी लड़की खिड़की के पास जाती है जोएल उसे देखता है , कहीं रो तो नहीं रही ? जैसे उसके देखने भर से लड़की को सांत्वना मिल जायेगी । 
मुड़ता है , देखता है सिस्टर अभी बाबा को इस ओर करवट करवा कर गई है । बाबा का चेहरा सिर्फ हड्डियों का ढाँचा रह गया है । त्वचा तन कर जैसे बस किसी तरह हड्डियों को ढकी हुई है । आँखें खुली एकटक । शुरु में शक होता कि देख रहे हैं, अब नहीं होता । इन आँखों में भीतर से कोई जोत नहीं जलती । शरीर बस एक खाली मकान रह गया है । बेचारगी और बेसहारेपन में जोएल की छाती दरकती है । “ओ बाबा लौट आओ , लौट आओ हमारे पास। “
 
डॉक्टर सब भी कुछ कहाँ बताते हैं । राउंड पर डॉकटर मिश्रा आते हैं । ऐसी गुरुगंभीर मुद्रा कि कुछ पूछा ही न जाता है । हाथ बाँधे जुनियर डॉक्टर का मजमा जुटाये आते हैं, बेड से लगे व्हाईटबोर्ड पर ताजी सूचना देखते हैं, यह दवाई बन्द , यह शुरु  सलाईन वाटर, ओर्थोपेडिक मोजे , वाटरबेड… पता नहीं क्या क्या बोलते हैं । नर्स और डॉक्टर सब जैसे सकते में सिर झुकाये भक्ति भाव से सुनते हैं । यहाँ पर पूछने की गुँजाईश कहाँ । 
 
कभी कभी डॉक्टर अहमद आते हैं तब नर्स भी उनसे मज़ाक करतीं हैं । अटेंडेंट्स भी पास आकर हिम्मत से पूछ लेते हैं । जोएल को देखते हैं तब खाली उसके कँधों को थपथपा देते हैं ,”दुआ करो” 
कितनी दुआ करे जोएल ? कितनी ? 
 
धुँध के पार राफेल देखता है । उसकी आत्मा शरीर से निकल कर चारों ओर विचरती है । फिर अपने शरीर को देखती है । एक अनाम आश्चर्य से देखती है । जोएल का बुझा चेहरा देखती है । एक एक करके वार्ड के छह मरीजों को देखती है । नर्सिंग स्टेशन पर बैठी रजिस्टर पर सधा सधा कर पेशेंट डीटेल्स लिखती मलयाली नर्स घुँघराले जट काले बालों वाली और घुमावदार बरौनियों वाली लता उन्नीकृष्णण को देखती है । कबर्ड से नया बैंडेज रॉल निकालती चपटे चेहरे और हँसते गाल वाली दीपानिता बोरा को देखती है, हरे गाउन और मुँह पर हरा मास्क लगाये हड़बड़ाता ओ टी में भागता घुसता बिजोय बरुआ को देखती है , बाहर सब्र से बैठे मरीजों के और उनके साथियों के हुजूम को देखती है । पैथोलॉजी लैब और यूरोलॉजी वार्ड के बाहर एक चक्कर लगाती है ।अस्पताल के कैंटीन से बासी समोसे और ताज़े चाय की महक सूँघती, पैरों पर ताज़ा नया प्लास्टर चढ़ाये बच्चे को तन्मय होकर पूड़ी तरकारी खाते देखती है, अस्पताल के बाहर दुख से भर्राती भसकती डूबती बेहोश होती औरत को अपने मृत पति के स्ट्रेचर पर ढहती देखती है । एक अबूझ दुख में डुब से डुबकी लगाता राफेल दुबक जाता है शरीर में , नींद में ।
 
जोएल साईड टेबल पर रखे नैपकिन रॉल से बाबा की आँखों के कोरों से बह आये आँसू पोछता है । क्या पता भीतर भीतर कितना दुख, कैसी तकलीफ । बाबा की उँगलियाँ सहलाते जोएल को लगता है कि दोनों एक शरीर हैं । एक ही त्वचा एक ही खून । जैसे बस छू कर जिलाया जा सकता है, ऐसा महसूस करता है जोएल । बाबा नहीं रहेंगे तो उसका एक जीता जागता हिस्सा मर जायेगा, खत्म हो जायेगा हमेशा के लिये । उसकी त्वचा के भीतर कुछ सरकता है । शायद समय सरकता है । वही समय जो बाबा के लिये किसी और तरीके से सरकता है । 
 
जोएल के ऊपर से छत धसक रही है । बारिश के छींटे पड़ते हैं । डॉन बास्को संस्थान के ब्रदर जोसेफ कुट्टी कहते हैं बात करेंगे हेडऑफिस । शायद कुछ और पैसे दिलवा सकूँ । हिसाब बताते हैं । फिर धीरे से फुसफुसाते हैं , ”और भी जरूरतमन्द ।“  
 
जोएल उँगली पर जोड़ता है हिसाब । एक खाई खुल जाती है पैरों के तले । पैसे न दिये होते संस्थान ने तो बाबा उसी दिन मर जाता । अंदर कोई आवाज़ निर्ममता से कहती है ,फिर ठीक ही हुआ होता । इतना पैसा, इतनी तकलीफ । कोई जवान आदमी बचा लेते । बाबा को बचा कर क्या मिलेगा । इतना पैसा उसे ही मिल जाता तो कम्प्यूटर वाली दुकान खोल लेता शहर में । ऐसे ही कोई और जिसपर परिवार टिका है, सिल्वेरियस जैसे । ट्रक के पीछे सौ मीटर तक घिसटा था फिर भी जिंदा था उस एक घँटे के लिये । उसके हाथ ऐसे पकड़े था जैसे पकड़े रहने से बच जायेगा । सरकारी अस्पताल में लावारिस पड़ा रहा , खून रिसता रहा । पेट से आँत तक बाहर । रिसा खून काला। जोएल को अब भी याद करके झुरझुरी छूटती है । फिर आँखों के सामने छटपटाहट से बेचैन, कुछ बोल न पाने से लाचार, तकलीफ और दर्द से दहशतमन्द, चुक गया । उसकी फटी आँखों का डर अब हमेशा रहता है जोएल के साथ । उसे ही पैसे मिल जाते तो शायद बच जाता ।
फिर जोएल शर्मिन्दा होता है । बाबा का चेहरा सहलाता है । उस चोर विचार को लुका छिपा लेता है कहीं बहुत अंदर । बाबा की आँख उसके चेहरे पर अनझिप गड़ी है । जोएल मुँह चुराये बाहर निकल जाता है । पहली बार अपने आप से । बाहर पार्किंग के पास पान की गुमटी के पास हताश निराश बैठ जाता है ।
 
उस रात के दावानल में अकेला बाबा बच कर क्या पा लिया ? सिस्टर इस्थर और फादर सैमुएल गये । कैसे विभत्स तरीके से गये । इतनी नफरत मिशन वालों के लिये । और बाबा क्यों कूदा इस आग में ? फादर जॉर्ज की याद की खातिर ? कि बहुत कुछ न मिलकर भी मिशन से कुछ मिला करके । जो बजरंगियों की टोली भीड़ उकसाती थी वो कहाँ अँधेरी रात के हाहाकार में घुलमिल कर बिला गई । पुलिस आई तो वही बुड़बक बकलोल आदिवासी मिले । कुछ को पकड़ कर ले गये । 
 
मिशन का उदार उद्दात्त स्नेह खत्म हुआ । सब स्वार्थ है । सब दबाकर रखने की साजिश है । रात को मंदिर के पीछे बरगद के पेड़ तले चुप्पे चुप्पे एक गुट जुटता है । फादर सैमुएल के खिलाफ अँधेरा ज़हर घोलता है । सफेद कुर्ते पजामे में शहरी त्रिपुंडधारी फुसफुसाता है और शब्द नफरत के घोड़े पर सवार बगटूट दौड़ते हैं । अँधे कूँये में टूटही बाल्टी से वाक्य डब डब गिरते हैं।..  रात, सैमुएल साला, बच्चे, बुड्ढे की लपंटता, उफ्फ घृणा कारी , पाप, ऐसा जघन्य पाप, बच्चे का जीवन कोरे कागज़ पर स्याही लपेस देना, दिव्य आदेश, सज़ा सज़ा सज़ा । 
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करमा में सब जुटते हैं , सब… हिन्दू इसाई सब । गिरजे का पादरी आँख बन्द कर लेता है । करमा खत्म होते ही फिर सब कुनबा जुटेगा । जिसे किरिस्तान बनना था बन गया । अब और क्या । पूरे महीने ढोल नगाड़े गूँजते हैं । कैसा उत्साह । जंगल थरथराता है गूँज से, नृत्य से, थाप से । और औरतें जवा के लिये बेंत की टोकरी में अंकूरे बीज सजाती हैं , करम देवता को तरबूज भेंट करती हैं । उनमें उर्वरता बढ़े, बेटा जने । मरिया अपनी  टोकरी सजाते सजाते राफेल को देखती है, मुस्कुराती है । राफेल सपना देखता है । 
“कब घर बसायेगा मेरे संग ? बसायेगा भी कि नहीं ?” मरिया अब भी मुस्कुराती है । उसकी आँख पर उदास बादल है ।
“मुझपे विश्वास नहीं तोके “ राफेल हैरान देखता है । “ ये भी कोई पूछने की बात है ? कहने की बात है “ 
उसके चेहरे पर गुस्सा झलकता है । मरिया की आँख और उदास हो जाती है । राफेल जितना गुस्सा होता है मरिया उतनी उदास होती जाती है । ढोल मादर की आवाज़ दोनों को अलग सुनाई देती है । 
 
रात राफेल भौंचक सोचता है , मरिया क्या बिलकुल भी नहीं समझी हमको , कुछ नहीं जानी रे तू । इस गाँव में रहकर अपना जीवन भगत के भेंट लाई उलटी लटकी मुर्गी जैसी नहीं बितानी उसको । बाहर जाना है, कुछ करना है । रात को दूर जाते रेल की धकधक सीटी उसके दिल को चीरती है । सपने में रमेसर का काला चश्मा दिखता है । पानी में डूबा दरियाई घोड़ा दिखता है जो पूछता है उसको, कहो शहर के क्या हाल ? रोज़ी रोटी मजे में ? पानी में एक करवट लेता राफेल हँसता है । खूब गहरे हिस्से में उँगली के पोर से लटकी टहनी को छूते राफेल डुब डुब डुबकी मारता है । डुबकी पूरी नहीं होती कि नींद उचट जाती है ।
 
शहर जाना है शहर जाना है । सुबह सुबह राफेल धरना देता है फादर जोर्ज के घर । कुछ बोलता नहीं बस चुप बरामदे पर बैठा रहता है ।रात घिरती है तब घर लौट जाता है । अगली सुबह फिर मुस्तैद । फादर आजिज आ जाते हैं । दिन में खाने आते हैं तो दो रोटी और साग उसे तश्तरी में पकड़ाते हैं । राफेल सर डुलाकर बिना कुछ कहे मना कर देता है । अब भी कुछ बोलता नहीं । चार दिन बीत गये हैं । फादर दरियाफ्त करते हैं गाँव में, रात को खाया कि नहीं ? सुसान , राफेल की बहन कहती है एक रोटी खाई थी । राफेल को गाँधी बाबा का सत्याग्रह याद आता है । रात में डिबरी के पीले रौशनी में खोज कर निकाली गई स्कूल की फटी किताब निकालकर बाँचता है । 
थकहार कर दसवें दिन फादर उसके सामने घुटनो के बल बैठते हैं , 
“ शहर जायेगा ? “ 
“ परसों सुबह चलेंगे , तैयार रहना और फिर वहाँ पहुँचकर मत कहना तुरत वापस आने को “ फादर की आवाज़ फँसती है । अपना बचपन याद नहीं आता । अब इतने साल बाद नहीं आता । उनका चेहरा इतने सालों की कड़ी धूप सहते लाल हो गया है, झुर्रियों से भरा, हाथ की उलटी हथेलियों पर भूरे चकत्ते ।
 
रात रोज़री रखते हुये एक प्रार्थना जोएल के लिये भी करते हैं । 
 
शहर की भीड़ में जोएल भौंचक घूमता है । उर्सुलाईन कॉंवेंट में एक कमरे में पाँच लड़के ठसमठस दिन बिता रहे हैं । मोटा लाल चावल और पानी जैसे रसे वाली आलू की हरहर तरकारी खा रहे हैं । इनश्योरेंस के दफ्तर में जोएल जेनेरेटरब्वाय बन गया है । बिजली कटती है तब जेनेरेटर चालू करना काम है । साथ में डाक इधर उधर ले जाना, बैंक जाना ऐसे छोटे मोटे काम भी । सब आज़ादी खत्म हुई । मन पर बेड़ी बँध गई है । साहब के घर कभी जाता है । वहाँ फूलमनी दिखती है । छोटी सी पतली सी । उसका दिल खिल जाता है । उसके तरफ की है । उसे देख कर शरमा कर मुस्कुराती है । उसका जाना बढ़ जाता है । रसोई के बाहर एकसाथ खड़े चाय पीने में अच्छा लगता है । उससे मरिया की बात करने में अच्छा लगता है । उससे गाँव की बातें करने में अच्छा लगता है । शहर में यही एक बात अच्छी लगती है ।
 
पहली छुट्टी में गाँव लौटता है । और दिन भर मरिया को फूलमनी की बात कहता है । नहीं देखता कि मरिया का चेहरा छोटा और आँखें कितनी बड़ी हो गईं है । वापस लौटने के एक रात पहले दोनों नदी के किनारे, चट्टानों के पीछे सफेद बालू में एक दूसरे को भर लेते हैं । सफेद रात में दो मछलियाँ तैरती हैं । मरिया का अनावृत शरीर इतना सुडौल है कि राफेल टक लगाये देखता है । एक नदी जनमती है और बहती है फिर चुकती है । मरिया की आँख से आँसू बहते हैं लगातार । 
 
शहर में राफेल को और कुछ याद नहीं आता । पसीने और ग्रीज़ में, शोर और पागलपन में, अकेलेपन में, निचाट अकेलेपन में राफेल अपने सपनों का मरना देखता है । देखता है कि शायद जीवन भर जेनेरेटर ही चलाता रहेगा, देखता है कि खुले जीप में चढ़ना सिर्फ किसी रमेसर के भाग्य की बात है । कि लोग उससे तू तड़ाक से ही बात करेंगे, कि उसके लिये जंगल और गाँव अब खो गया और शहर कभी मिला भी नहीं ।
 
फादर जॉर्ज सोचते हैं , बस इसी दिन के लिये मैंने प्रार्थना की थी । इतवार को राफेल के मरे चेहरे को देखते हैं । सोचते हैं हद के बाहर का सपना दिखाना भी एक तरीके का पाप है । लेकिन आसमान दिखाना भी एक तरीके का पुण्य है ।
 
सुसान उसे नदी के उस मोड़ पर ले जाती है, जहाँ पेड़ की शाख पानी को छूती है । उसका हाथ पकड़ कर पानी में उतारती है । बस यहीं पर… इतना कह कर लौट जाती है । राफेल देखता है उसे जाते । जब दिखना बन्द हो जाती है तब मुड़ता है पानी के धार की ओर । पैर के तलवों पर चिकने गोल पत्थर और लसीली मिट्टी का मखमली स्पर्श है । पानी के अंदर अपने अँगूठे से तल महसूसता है । यहीं कोई छेद है जहाँ से मरिया इस दुनिया से गिर गई । फिर धीरे धीरे कमर भर पानी में बैठ जाता है । इतने कम पानी में कैसे कोई डूब सकता है ? अपनी हथेलियों से पानी को सहलाता है । फिर फफक फफक कर रोने लगता है । आँसू और नदी सब एक हो जाते हैं ।
 
गाँव के सब समर्थ लड़के शहर पहुँच गये हैं । कुछ लड़कियाँ भी । दफ्तरों में, स्कूल में, क्लिनिक में… जहाँ कहीं भी काम करते हैं हर जगह उनके जैसे लोग नीचे खड़े रहते हैं, हुक्म बजाते हैं, हुकुम देने वाले कभी नहीं बनते । राफेल देखता है, खाली आँखों से देखता है । रात सपने में देखता है ऊपर से बरसा होती है नोटों की, लेकिन सब नोट फटे होते हैं । एक भी समूचा नहीं । कमीज के अन्दर पसीने की धार बनती है और पीठ पर सवार हो जाती है । कभी सूखती नहीं । यही मेरा भाग ।
 
शाल के पेड़ के नीचे पाठशाला लगती है । बोरे पर एक दर्जन बच्चे हिल हिलकर पहाड़ा रटते हैं । मिशन का स्कूल अब गरीब बच्चों को नहीं पढ़ाता । वहाँ अब रईस बच्चे बोर्डिंग में रहकर पढ़ते हैं । राफेल हाथ में रुलर लिये, कुर्सी पर बैठा देखता है । ठीक बीचोबीच जोएल का हँसता चेहरा । 
“बाबा” अपनी कानी उँगली ऊपर करता है । ”जा पर जल्दी लौटना“
 
राफेल फिर सपना देखता है । आसमान में खूब तारे टँगते हैं । पर रात अब इतनी शाँत कहाँ । दिन रात क्वैरी से आवाज़ आती है । चट्टानों के टूटने की आवाज़ जैसे कोई विलाप हो कोई दहाड़ हो । लाल महीन धूल की एक परत आसमान को ढके रहती है । फिर भी राफेल सपने देखता है । अब जोएल के लिये देखता है ।
 
राफेल नाच रहा है । फिरकी सा नाच रहा है । पानी में भँवर है और ठीक बीच में कोई फूल है जिसे पकड़ना है । हर बार उँगली के पकड़ के ठीक बाहर रह जाता है । पाँव के नीचे वही लसलसी मिट्टी है , वही गोल चिकने पत्थर हैं । धीरे धीरे बैठता है । पानी कमर तक है, अब छाती तक, अब गर्दन तक । साँस पूरा फेफड़े में भरकर, अँगूठे और तर्जनी से नाक को दबाये मुँह बन्द किये डुबकी लगाता है । पानी में कुछ देर तक बुलबुले उठते हैं । फिर सतह शाँत हो जाता है । आसमान में कोई चिड़िया गोल गोल चक्कर काट रही है ।
 
बेड के नीचे दरी पर लेटे जोएल बचपन की बात सोचता है । बाबा ने कितने सपने देखे । बी ए पढ़ाया , शहर भेजा । क्वैरी में काम किया । फेफड़ों में लाल धूल भरा लेकिन क्या मिला ? कुछ भी तो नहीं मिला । मिशन तक में ढंग का काम नहीं । वही सफाई, दरबानी, ड्राईवरी । यीसु भी कहाँ हमारा गड़रिया बना । छोड़ दिया हमको , सबने छोड़ दिया । पैरों को मोड़ कर सीने से लगा लेता है जोएल । हाथों से खुद को बाँध लेता है । जैसे बाबा बचपन में अपनी छाती से लगाकर सुलाते थे । सिस्टर आकर झकझोरती है, “क्या हुआ ?” 
जोएल आँ आँ कहकर कुनमुना कर बैठ जाता है । देखता है गाल आँसूओं से तर हैं । झेंपता कहता है, ”कुछ नहीं “  
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राफेल की छाती में मारिया का सिर गर्म साँस छोड़ता है । उनका बदन एक है । दो छाया अलग हटती है , फिर एक होती है । धीमे धीमे लय में । एक दुलार की चादर उनपर लिपटती है जैसे माँ अपनी संतान को समेट ले वैसे एहतियातन । त्वचा अपना स्थान छोड़ती है शरीर की रेखायें एक दूसरे में विलीन होती हैं । राफेल झुका है, समेटे है, मारिया सिमटती है फिर ऐसे विस्तार से भर उठती है कि उसका शरीर आसमान बन जाता है । राफेल उस आसमान का पखेरू बन जाता है । हवा उसके शरीर को उठाती है उठाती है । अँधेरा इतना गहरा है कि अब कोई छाया नहीं दिखती । बस मारिया की गर्म साँस राफेल की छाती को छूती है ।
 
सलीना मारिया की बहन उसे नन्हा जोएल पकड़ाती है । उस नन्हें से गुलगुल मांसपिंड में राफेल भौंचक मारिया की गर्मी तलाशता है । उँगलियाँ थरथराती जोएल के चेहरे पर विचरती हैं । नाक आँख होंठ माथा । सब एक एक करके । यह तो साझा सुख था फिर मरिया ने उससे साझा तक नहीं किया । क्यों । दर्द भरी आँख से राफेल सलीना को देखता है । 
 
— तुम साल भर आये नहीं । कोई खबर तक नहीं भेजा ।
— नहीं भेजा , नहीं आया । बीमार पड़ा था , अस्पताल में अकेला पड़ा था । रायपुर के भी आगे और बड़े शहर में सपने खोजने गया था । फिर सपने के आगे मरिया खो गई रे, राफेल हिलक कर रो रहा है ।
— न सपना मिली न मरिया मिली । सब लुट गया, सब । छाती में दर्द सर्दी सा जम गया । तब से राफेल हमेशा सर्दियाया हो गया । आवाज़ भी ऐसे निकले जैसे छाती के अंदर कफ जमा है । लोग पूछते , क्या रे राफेल तेरा जुकाम ठीक नहीं होता क्या ? भगत से बूटी ले न । 
खाली राफेल को पता है छाती में कफ नहीं मरिया जमी है । कभी हड़िया के नशे में चीख चीख कर झूमता । 
— मरिया छोड़ दे न मुझे , हाथ जोड़ता हूँ छोड़ दे मुझे ।
सलीना जोएल को पीठ से बाँधे दूर से देखकर निकल जाती है । अगली सुबह राफेल चुप सलीना के घर आता है । मेरा बेटा दे मुझे । 
— हट कमीना, निकल यहाँ से । हड़िया पी के बच्चा पालेगा ? भाग । 
 
फादर जेवियर मिशन में आ गये हैं । फादर जॉर्ज सोये सोये मर गये एक दिन । मिशन आजकल खस्ताहाल है । बाहर का पैसा सूख रहा है । किसे फिक्र कि मुट्ठी भर आदिवासी क्रिसमस मनाते हैं कि करमा । 
 
फादर जेवियर तू तड़ाक से बात करते हैं । लोग जान गये हैं कि मिशन में ड्राईवर और चौकीदार के आगे उनके लिये कुछ नहीं । एक आक्रोश खदबदाता है उनके अंदर । मिशन के बदले शहर से आये कुर्ता पजामा वाले हिन्दू नेता आजकल खुली जीप में घूमते हैं । 
 
बरमू और सागू जैसे लड़के अब उनके साथ घूमते हैं । पान खाते हैं, बीड़ी सिगरेट धूँकते हैं । बरमू पार्टी के दफ्तर में कुछ करने लगा है । गड्डी भर नोट उसके जेब से झरते हैं आजकल । पिछली दफा काला चश्मा पहन कर आया था राफेल के पास । हिन्दू बन जा रे, इसी में फायदा है ।
 
राफेल सोचता है क्या मेरा बाप फायदे के लिये क्रिस्तान बना ? शायद ..फिर मैं फायदा देखकर हिन्दू बन जाऊँ । गरीबों का धर्म दो वक्त की रोटी । 
फादर जेवियर कहते हैं एक बार तो शहर भेजा, नौकरी दिलाई… सब छोड़ छाड़ भाग आया । अब अपना रास्ता देख । मिशन और क्या क्या करेगा तुमलोग के वास्ते । 
 
हड़िया दारू के नशे में दिन धुँधलाये निकलते हैं । सब सपना चूर चूर हुआ । नदी सचमुच सूख गई । मक्खी भिनभिनाती है मुँह पर । फिर एक दिन जैसे भर्राई नींद से जगता है राफेल । जीवन को कस कर थाम लेना चाहता है । ओड़ाये बौड़ाये किसी घनचक्कर लपेट से बाहर निकल भागना चाहता है । जैसे जीना ऐसा जरूरी हुआ जैसे अब तक कभी न था । जैसे अब जाकर समझ आया कि खाली सोई आँख सपना देखना जिन्दगी नहीं । जैसे एक बार मरने के बाद ही जीना फिर फिर शुरु होता है । जैसे भूख से छटपट प्राण जाते जाते हुलस हुमक कर ऐसा मुँह भरकर भात दाल का बड़ा मुट्ठी में न समाये ऐसा बड़ा कौर भरकर हबड़ तबड़ खाने में गले में ठाँस लग जाये, ऐसी अफरा तफरी की बेचैनी से फिर जीना ही जीना है । 
 
उस रात जंगल में सियार बोलते रहे । रात भर हू हू चलती हवा में, खुले में, मोटा कंबल ओढ़े, राफेल जागा रहा । रात भर चकमक रात में तारों का अंजोर देखता रहा । ठंडी हवा से बदन का एक एक पोर जाग गया । उस रात राफेल ने तय किया कितनी कितनी चीज़ें जो शुरु होंगी अब अब !
 
क्वैरी का काम आसान नहीं था । फेफड़े फावड़ा चलाते जब थक जाते तब कंठ लाल महीन धूल खा खा कर मोटा हो जाता । दिन रात क्रशर के आवाज़ से कान के पर्दे सुन्न पड़ जाते । हाथों में पहले छाले पड़े फिर त्वचा सख्त हुई । अब हाथ पत्थर हैं । सलीना को रात में छूता है तो स्पर्श का एहसास ही नहीं होता । जैसे किसी जानदार चीज़ को बेजान त्वचा का स्पर्श मिल रहा हो । 
सलीना कहती है , 
मैं तुमको भाती नहीं न रे… खाली जोएल के वास्ते मुझसे रसम किया न राफेल ?
 
राफेल गुस्सा नहीं होता अब किसी बात पर सिर्फ सलीना को देखता है थिर आँखों से ।  अगले दिन फिर मशीन की तरह दुगुने तेज़ी से पत्थर तोड़ता है । ठेकेदार का आदमी उसे देखता है , भाँपता है । 
काम वाला आदमी है । हड़िया महुआ का नशा नहीं करता । फज़ूल बात नहीं करता ।
जब सुपरवाईज़र बिस्वास बाबू बीमार पड़ता है तो राफेल को उसका काम सौंप दिया जाता है । 
 
उस दिन अखबार वाले आये थे तब ठेकेदार बाबू ने उसको बुलाया था । ये हमारा फोरमैन है । लोकल है । हमारा तो यही पॉलिसी है कि सब लोकल लोग को काम मजदूरी मिले , रोज़गार मिले ।
 
राफेल को क्रशिंग मशीन के बाजू में खड़ा कराकर बोलते हैं “अब हँसो !” 
ठेकेदार बाबू टोकता है बीच में , ये वाला सेफ्टी हेलमेट पहन लो राफेल । राफेल पीला हेलमेट पहन कर क्रशर के बगल में खड़ा हो जाता है । चार महीने बाद ठेकेदार बाबू पत्रिका में छपी उसकी फोटो दिखाते हैं 
 
देख रे राफेल तू तो हीरो बन गया ।
 
राफेल बुड़बक नहीं है । फिर भी भीतर भीतर कहीं खूब अच्छा लगता है ।
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जोएल को लगता है कि अब बहुत थक गया है । इतना कि पूरे जीवन भी आराम करेगा तो ये थकान नहीं जायेगी । कल टीवी वाले आये थे । लाईट कैमरा माईक । 
बाबा के चेहरे पर पूरा लाईट । बाबा की आँख अनझिप है । इतनी रौशनी में भी अनझिप है । मरते मरते बाबा फिर से हीरो बन गया ।
टीवी पर खबर आ रही है… फॉलो अप न्यूज़ । 
 
चार महीने पहले जसपुर मिशन पर  अज्ञात हमला हुआ था जिसमें मिशन का अस्पताल , छोटा गिरजाघर, और नंस  हॉस्टल जलाया गया, उस हमले से बचा एकमात्र व्यक्ति राफेल तिग्गा अब भी अपनी ज़िंदगी की लड़ाई अस्पताल में लड़ रहा है । तीन महीने से कॉमा में पड़े राफेल तिग्गा की देखभाल करने को सिर्फ उनका बेटा जोएल तिग्गा है । आपको याद होगा कि राफेल अपनी जान पर खेल गया था सिस्टर ईस्थर और फादर सैमुएल एक्का को बचाने की खातिर । ज्ञात रहे कि राफेल के इलाज से अब चर्च और अब डॉन बॉस्को संस्थान भी पीछे हट रहे हैं ।  
 
संवाददाता के चेहरे पर जोश है , चमक है । रिकार्डिग के बाद जोएल सहमता हुआ पूछता है , कुछ पैसों की मदद वो दिलवा सकते हैं ? उसे फादर कुट्टी का अल्टीमेटम याद आता है । किसी तरह पैसों का इंतज़ाम हो जाये । टीवी क्रू में से एक आदमी मुँह टेढ़ा करके पूछता है जिसकी जान बचाते उसका बाप आज इस हाल में है उससे मदद माँगने क्यों नहीं जाता ? फिर मुड़कर वो आदमी विद्रूप से कहता है… हिन्दू बन जाओ… अब इसी में फायदा है… फिर ठठाकर हँसता है ।
 
जोएल फक्क देखता है । फिर बाबा को देखता है । बाबा के अनझिप आँखों से दो बून्द आँसू कोर से बह निकले हैं । खिड़की के बाहर नीले आसमान के टुकड़े में एक चील लगातार गोल चक्कर काटती हवा में ऊपर और ऊपर उठती जाती है ।
 
सिस्टर शारुख के बेड पर झुकी पुकार रही है शारुख शारुख , कैसे हो शारुख ?
 
राफेल की आँख तेज़ रौशनी में झिपती है । फादर सैमुएल का चेहरा फादर जॉर्ज में बदल जाता है । सुरंग के पार अपने सफेद चोगे में फादर खड़े मुस्कुराते हैं । उनके पीछे इतनी रौशनी है कि सब सफेद चमकीला दिखाई देता है । कोई पीछे से टोक कर पूछता है , तुम क्रिस्तान हो ? कि हिन्दू हो ? बरम देवता को मानते हो कि यीसु के गुन गाते हो ? राफेल हिलता है एक लय में । उसके बदन से गीत फूटता है । उसके बदन से रोटी की खुशबू आती है । उसके बदन से फसल की हरियाईन गँध बिछलती है । पाहन की बलि याद आती है । क्रिसमस का भोज याद आता है । मरिया फूलमनी याद आती है, सलीना याद आती है, कठोर बीहड़ जीवन में संताप सोग याद आता है, बरम देवता की अनुकम्पा याद आती है, टूट कर लहलहाती फसल का उगना याद आता है, सलीब पर लटके ईसा की करुणामई मूर्ति याद आती है, टोकरी भर चाँदी सी मछलियाँ याद आती हैं । उस जलते हुये मिशन अस्पताल में सिस्टर ईस्थर की चीख याद आती है, भीड़ का उन्मत्त उन्माद याद आता है । क्या फरक पड़ता है हिन्दू हों कि किरिस्तान हों, क्या फरक पड़ता है करमा कि क्रिस्मस हो, क्या फरक पड़ता है ? कैसे बताये कोई फरक नहीं पड़ता । फरक पड़ता है जब आँखों में भर भर सपने हों, फरक पड़ता है जब सपने सच की जमीन पर उगें, फरक पड़ता है पेट भर खाना हो , चैन भर सोना हो । जब मरना हो तो मन भर जीना हो । छाती से कुछ ऐसा भारी हटता है कि कैसे बता दें, कैसे कैसे । कैसे बता दें कि जोएल सपने देखना कि तुम्हारे अंदर मैं सपने देखूँगा, कि तुम्हारे अंदर मेरा बाबा सपने देखेगा , फिर उसके बाबा , हमारे सब पुरखे… ओह जोएल कैसे भींच लूँ तुम्हें अपनी छाती में । राफेल देखता है एक पल को फिर धीमे से उसकी छाती बैठ जाती है । साँस अंदर जाती है फिर अंदर ही रह जाती है । आँख से निकला एक बून्द आँसू वहीं कोर पर ठिठक जाता है । 
 
जोएल अस्पताल के बाहर मड़ई वाले ढाबे में भात दाल तरकारी सर झुकाये तन्मयता से खा रहा है । यह साली पेट की भूख भी ऐसी चीज़ है, न समय न स्थान, न धर्म न जाति, न काल न भाव… कुछ भी तो नहीं देखती ।