1. GROUP 1. BBC. मंगलवार, 13 मई, 2008
A. लेख के अनुसार वायु प्रदूषण मानव शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है?
B. किन लोगों के लिये ज्यादा खतरा होता है?
C. डॉक्टरों के अनुसार क्या करना अच्छा है
एक अमरीकी अध्ययन में पाया गया है कि प्रदूषित हवा और ट्रैफ़िक के धुएँ से जिस्म के अंदर ख़ून के जम जाने का ख़तरा बढ़ जाता है.
‘हार्वर्ड स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ‘ में किए गए इस अध्ययन के अनुसार जैविक ईंधन के जलने से जो धुआँ निकलता है उसमें बेहद छोटे आकार के ऐसे रासायनिक कण होते हैं. इनसे हृदय रोग का ख़तरा बढ़ जाता है.
इन कणों की वजह से खून इतना गाढ़ा हो जाता है कि हृदय गति तक रुक सकती है.
इस शोध के दौरान ये भी पता चला कि धुएँ और प्रदूषण से निकलने वाले ये ज़हरीले रासायनिक कण पैरों की धमनियों में बहने वाले खून को भी गाढ़ा कर देते हैं जिससे ‘डीप वेन थ्रॉमबॉसिस’ यानी ‘डीवीटी’ या ‘धमनियों में अवरोध’ का ख़तरा बढ़ जाता है.
वैज्ञानिकों ने इस शोध के लिए तक़रीबन 2000 लोगों को चुना था. वैज्ञानिकों ने पाया कि प्रदूषण से खून चिपचिपा और गाढ़ा हो जाता है.
शोध में ये बात भी सामने आई कि चुने गए 2000 लोगों में से यूरोप के शहर इटली के रहने वाले 900 लोगों में धमनियों में अवरोध यानी डीवीटी की बीमारी पैदा हो गई. इन लोगों के खून में ‘ब्लड क्लॉट‘ या खून के थक्के देखे गए. खून के ये थक्के पैरों की धमनियों से होते हुए फेफड़ों में पहुँच कर एक बड़ा ख़तरा पैदा कर सकते हैं.
वैसे ‘डीवीटी‘ यानी धमनियों में खून के जम जाने का ख़तरा उन लोगों को ज़्यादा होता है जो ज़्यादा देर तक एक ही जगह बैठकर काम करते हैं.
जैसे, हवाई या रेल यात्रा के दौरान ज़्यादा देर तक एक ही जगह पर बैठे रहना या फिर दफ़्तरों में एक ही जगह पर बैठकर काम करना.
इसी लिए सलाह दी जाती है कि दफ़्तरों में आप एक ही जगह पर बैठकर काम न करें बल्कि बीच–बीच में अपनी कुर्सी पर ही कुछ हल्की–फुल्की कसरत कर लें या फिर चलते फिरते काम करें.
डॉक्टर एंद्रिया बासारेली कहती हैं, “हमारे शोध के मुताबिक़ प्रदूषण बढ़ने से किसी भी शख्स में डीवीटी का ख़तरा बढ़ जाता है.”
डॉक्टर बेवेरली हंट कहते हैं, “पिछले कुछ दिनों से चल रहे हमारे शोध से ये बात सामने आई है कि वायु प्रदूषण से दिल की बीमारियों और हृदय गति रुक जाने का ख़तरा काफ़ी बढ़ जाता है.”
“इस शोध से पहली बार पता चला है कि वायु प्रदूषण से धमनियों के अंदर खून के थक्के जम जाने की आशंका बढ़ जाती है.”
वैज्ञानिक मानते हैं कि थोड़ी ही कोशिशों से वायु प्रदूषण को आसानी से काबू में किया जा सकता है.
वैसे, अमरीका में हुई इस खोज के बाद ये कहा जा सकता है कि भारत में महानगरों के अलावा कानपुर, पुणे और दूसरे शहरों में दिल के मरीज़ों की संख्या क्यों तेज़ी से बढ़ रही है.
2. GROUP 2. BBC. बुधवार, 14 नवंबर, 2007
A. इस लेख के जाड़े का मौसम दिल्लीवासियों के लिये क्यों खतरनाक है?
B. दिल्ली की सड़कों पर गाड़ियो की संख्या क्यों बढ़ी है?
C. दिल्ली सरकार को प्रदूषण से निपटने के लिये क्यों पड़ोसी राज्यों की सरकारों से बात करनी चाहिये?
साल 2007 और 2008 के जाड़ों में दिल्ली ज़्यादा धुंधली नज़र आएगी और लोगों में साँस के रोगों से संबंधित तकलीफें भी बढ़ सकती हैं. यह चेतावनी पर्यावरण संस्था सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट यानी सीएसई ने जारी की है.
संस्था के अनुसार पिछले चार सालों में दिल्ली में वायु प्रदूषण काफ़ी बढ़ गया है और यदि तुरंत कुछ सख़्त क़दम नहीं उठाए गए तो स्थिति काफ़ी बिगड़ सकती है.
लगभग सात साल पहले दिल्ली सरकार ने वायु प्रदूषण कम करने के लिए कई क़दम उठाए थे इसके तहत सीएनजी से चलने वाली बसों और टैक्सी को भी शामिल किया गया. इससे शहर की हवा काफी साफ़–सुथरी हुई थी.
लेकिन सीएसई का कहना है की पिछले सालों में शहर की सड़कों पर इतनी ज़्यादा संख्या में कारें आ गई हैं कि प्रदूषण का स्तर एक बार फिर लगभग वहीं पहुँच चुका है जहाँ सात साल पहले था, यानी प्रदूषण रोकने के पिछले प्रयासों पर पूरी तरह से पानी फिर चुका है.
भारत की आर्थिक स्थिति इस समय अच्छी है जिससे कार बाज़ार भी चढाव पर है. प्रतिदिन दिल्ली में लगभग 1000 नए व्यक्तिगत वाहनों का पंजीकरण होता है.
ख़बर है की देश की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी टाटा मोटर्स जल्द ही दुनिया की सबसे सस्ती कार बाज़ार में उतारने वाली है जिससे कारों की संख्या में और वृद्धि होने की संभावना है. इस कार का अनुमानित मूल्य एक लाख रुपए होगा.
सीएसई के अनुसार दिल्ली में प्रदूषण का स्तर पिछले चार सालों से बढ़ना शुरू हुआ है. विशेषज्ञों के अनुसार जाड़े के समय प्रदूषण काफी बढ़ जाता है जिससे साँस से संबंधित रोगों की तकलीफें बढ़ जाती हैं क्योंकि जब तापमान गिर जाता है तो धूल के कण वातावरण में एक धुंधली चादर की तरह लटके रहते है. इससे देखने में तो मुश्किल होती ही है, फेफड़ों में भी जकड़न सी महसूस होती है.
दिल्लीवासियों के लिए इस बार जाड़े में होने वाला कोहरा कुछ जल्दी आ गया है और दिसंबर के बजाय नवंबर में ही धुंधलापन छाया हुआ है. कई लोग छींकने और खाँसने की शिकायत कर रहे हैं.
लोगों को डीज़ल से चलने वाले वाहनों के ख़िलाफ़ ख़ुद आवाज़ उठानी चाहिए.
दिल्ली सरकार ज़ल्द ही डीज़ल से चलने वाले लगभग चालीस हज़ार हल्के वाहनों को सीएनजी में परिवर्तित करने की योजना ला रही है.
दिल्ली सरकार चाहती है के प्रदूषण से निपटने में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सरकारें भी सामने आएँ क्योंकि दिल्ली में अच्छा ख़ासा प्रदूषण पड़ोसी राज्यों से आने वाले वाहनों से भी होता है.
3. ROUP 3. BBC. मंगलवार, 05 दिसंबर, 2006
A. इस लेख के अनुसार चावल पैदावार पर किस से नुकसान है?
B. दक्षिण एशिया के बारे में क्या समस्या है?
C. शोधकर्ताओं के अनुसार भारत में इस समस्या का उपाय क्या है?
एक शोध के मुताबिक भारत में चावल की कम होती पैदावार का कारण प्रदूषण के बादल हो सकते हैं.
एक अमरीकी दल ने पता लगाया है कि ज़्यादातर दक्षिणी एशिया में भूरे रंग के बादल हैं जो धूप और बारिश को कम करते हैं जिससे चावल की फ़सल पर बुरा असर पड़ता है.
शोध दल ने यह भी पता लगाया है कि ग्रीन हाउस गैसों की बढ़ी हुई मात्रा के कारण भी पैदावार प्रभावित होती है.
कुछ शोधकर्ताओं ने कहा है कि बदले हुए गर्म मौसम को देखते हुए नई फ़सलों की ज़रूरत है जो नए मौसम के मुताबिक ख़ुद को ढाल सकें.
वर्ष 1980 के बाद से ही भारत में चावल की पैदावार में कमी देखी जा रही है और आशंका जताई जा रही है कि चावल की भारी कमी हो सकती है.
इसके कारण खोजने के लिए शोधकर्ताओं ने भूरे बादलों के असर के बारे में शोध किया जो एशियाई इलाक़े पर छाए रहते हैं.
विश्व भर में दक्षिण एशिया ऐसा इलाक़ा है जहाँ सबसे ज़्यादा भूरे बादल छाए रहते हैं.
प्रदूषित बादल आमतौर पर ईंधनों और दूसरे जैविक पदार्थों को जलाने से बनते हैं.
ये बादल सूर्य की गर्मी को धरती तक पहुँचने से रोकते हैं जिससे धरती पर मौसम ठंडा हो जाता है. हाल के शोध से पता चला है कि इससे बारिश पर भी असर पड़ता है.
शोधकर्ताओं ने भारत में चावल की पैदावार के पुराने आँकड़ों का अध्ययन किया और उस पर प्रदूषित बादलों के असर के बारे में पता लगाया.
अगर 1985 से लेकर 1998 के बीच भूरे बादल नहीं होते तो चावलों की पैदावार 11फ़ीसदी ज़्यादा होती.
इन बादलों के चलते रात में तापमान कम हो जाता है जो फ़सल के लिए अच्छा है पर साथ ही प्रदूषित बादलों के चलते बारिश भी कम हो जाती है यानी इन बादलों से होने वाले नुकसान ज़्यादा हैं.
कई शोधकर्ताओं के मुताबिक इन बादलों को कम करने से तापमान बढ़ेगा और चावल की पैदावार और कम हो सकती है.
इसका कारण यह बताया गया है कि पूर्व के शोध के मुताबिक ग्रीनहाउस गैसों से जो तापमान बढ़ता है, भूरे बादल उस असर को कम कर सकते हैं.
लेकिन सिर्फ़ भूरे बादलों को कम करना या साथ में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में कटौती से चावलों की पैदावार बढ़ सकती है.
उन्होंने कहा कि अभी सिर्फ़ उन इलाकों का अध्ययन किया गया है जहाँ फ़सल के लिए बारिश के पानी का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन जिन इलाक़ों में दूसरे सिंचाई के साधनों का इस्तेमाल होता है वहाँ भूरे बादलों का असर कम होगा.
विकासशील देशों में खेती का अध्ययन करने वाली संस्था सीजीआईएआर ने कहा था कि चावल समेत अन्य फ़सलों की कई प्रजातियाँ तैयार करने की ज़रूरत है.
4. GROUP 4. BBC. रविवार, 16 मई, 2010
A. इस लेख के अनुसार पर्यावारण और लोगों की तबियत के बीच क्या वास्ता है?
B. क्यों प्रदूषण को कम करने की कोशिश की जानी चाहिए?
C. अधिक प्रदूषण में रहने से दिल के दौरे या पक्षाघात का ख़तरा क्यों बढ़ जाता है?
अब तक शहरों के प्रदूषण को श्वास की बीमारियां से जोड़ा जाता था लेकिन अब उसे उच्च रक्तचाप का भी एक कारक बताया गया है.
जर्मनी के शोधकर्ताओं ने पाँच हज़ार लोगों पर अध्ययन किया और पाया कि लंबे समय तक प्रदूषण झेलने वाले लोगों का रक्तचाप ऊंचा हुआ.
शोधकर्ताओं के इस दल का कहना है कि प्रदूषण को कम करने की कोशिश की जानी चाहिए.
उच्च रक्तचाप से रक्तवाहिकाएं सख्त हो जाती हैं जिससे दिल के दौरे या पक्षाघात का ख़तरा बढ़ जाता है.
डुइसबर्ग ऐसेन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने आबादी पर चल रहे एक अध्ययन का डेटा इस्तेमाल किया और देखा कि 2000 से लेकर 2003 के बीच वायु प्रदूषण का रक्तचाप पर क्या असर पड़ा.
इससे पहले हुए अध्ययन बता चुके हैं कि वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने से रक्तचाप भी बढ़ सकता है लेकिन अभी तक ये नहीं पता था कि लंबे समय तक प्रदूषण का सामना करने का क्या असर होता है.
डुइसबर्ग ऐसेन विश्वविद्यालय में पर्यावरण और नैदानिक महामारी विज्ञान विभाग की प्रमुख डॉ बारबरा हॉफ़मैन ने कहा, “हमारे शोध के परिणाम बताते हैं कि जिन इलाक़ों में वायु प्रदूषण अधिक है वहां रहने वालों में उच्च रक्तचाप अधिक पाया गया“.
उन्होने कहा, “ये ज़रूरी है कि जहां तक हो सके लंबे समय तक लोगों को अधिक वायु प्रदूषण से बचाएं“.
अब यह दल इस बात की खोज करेगा कि क्या लंबे समय तक अधिक प्रदूषण में रहने से रक्तवाहिकाएं जल्दी सख़्त हो जाती हैं या नहीं.
ब्रिटिश हार्ट फ़ाउंडेशन में काम करने वाली एक वरिष्ठ नर्स जूडी ओ सलिवेन ने कहती हैं, “हम जानते हैं कि वायु प्रदूषण और दिल और रक्तवाहिकाओं की बीमारियों के बीच संबंध है लेकिन हम अभी यह पूरी तरह नहीं जानते कि यह संबंध क्या है. यह अध्ययन एक रोचक सिद्धांत का प्रतिपादन करता है कि वायु प्रदूषण से रक्तचाप बढ़ सकता है. इस दिशा में काफ़ी शोध हो रहे हैं. इससे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि लोगों को प्रदूषण के ख़तरों से बचाने के लिए क्या किया जाए“.