पगडंडी ने कहा सड़क से

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एक दिन सड़क और पगडंडी में ठन गयी।

सड़क बोली, “देख, मैं कितनी चौड़ी,लम्बी हूँ और पक्की हूँ तू तो पिचकी हुई और छोटी-सी है। मैं पत्थर, रेत, डाबर, सीमेंट से बनी हूँ और तू तो एक छोटा और पतला मिट्टी का बना हुआ रास्ता भर है । मुझ पर बहुत सारे लोग एक साथ चल सकते हैं तुझपर तो एक दो लोग ही चल सकते हैं। मुझ पर बहुत सारे वाहन जैसे कार, स्कूटर, साइकिल, बैलगाड़ी,रिक्शा,घोड़ागाड़ी एक साथ चलते हैं। तुझ पर तो केवल इन्सान व जानवर पैदल ही चल पाते हैं। बारिश के मौसम में तू चिकनी हो जाती है और लोग तुझपर फिसल जाते हैं। मैं तो शहरों में पाई जाती हूँ। तू तो गाँवों में ही मिलती है। मेरा तेरा क्या मुक़ाबला।”

पगडंडी उदास हो गयी। तभी एक हवा को झोंका आया। पगडंडी ने देखा, उसपर चलने वाले लोगों ने गहरी साँस ली। फिर क्या था,पगडंडी चहकी और सड़क से बोली, “देखा ! जब लोग मुझ पर पैदल चलते हैं तो वे शुद्ध हवा में साँस लेते हैं। उनका स्वास्थ्य ठीक रहता है। तुझ पर चलने वाले वाहन ज़हरीला धुआँ फैलाते हैं जिससे लोग बीमार हो जाते हैं। मुझ पर पर चलने वाले लोग शुद्ध हवा में साँस लेते हैं। तुझे तो डाबर, बजरी से मिलाकर बनाया जाता है। हमें देख, हम तो खुद ही बन जाते हैं। लोग एक ही रास्ते पर चलते हैं और धीरे-धीरे कच्चा रास्ता बन जाता है। मुझ पर चलकर लोग अपने घर, गाँव, खेतों की चौपाल और नुक्कड़ की दुकान पर चले जाते हैं। पगडंडियों में अपनापन होता है। आते-जाते लोग आपस में बात करते हैं जो गाड़ियों में चलने वालों में नहीं होता। लोग तुझ पर केले-संतरों के छिल्के  फेंक देते हैं जिस पर फिसल कर लोग गिर जाते हैं। हम तो केले -संतरों के छिलके खेतों में डाल देते हैं। जिससे दोबारा खाद बन जाती है। बारिश के मौसम में हम चिकनी हो जाती हैं पर सारा पानी खेतों में चला जाता है सड़कों से पानी तो गन्दे नालों में चला जाता है। तुमको अक्सर तोड़फोड़ कर दोबारा बनाया जाता है जबकि हम तो हमेशा अपनी जगह पर बनी रहती हैं।”

अब सड़क के उदास होने की बारी थी। उसने सोचा पगडंडी कहती तो ठीक है। वहाँ का संकरा मार्ग जो लोगों के पैदल आने-जाने से, जंगल बगीचे, खेतों आदि में बन जाता है; टेढ़ा-मेढ़ा तो ज़रूर होता है पर ज़्यादा सुलभ होता है।

उसने पगडंडी से कहा, “हम दोनों पर चलने वाले तो मनुष्य ही हैं। फिर यह लड़ाई कैसी, आओ हम दोनों दोस्ती कर लेते हैं।”

(डहाणू, महाराष्ट्र)

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