जैसे हाथों को पाँच उंगलियाँ बराबर नहीं होती ठीक उसी प्रकार ग्रामीण समाज में भी पाँच तरह के लोग रहते हैं जो एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न होते हैं। इनके बीच सामंजस्य बैठाना मुश्किल होता है।
यह कथा तब की है जब ‘तरुण भारत संघ’ की स्थापना नहीं हुई थी। उस काल में अरावली पहाड़ी की तलहटी के किशोरी गाँव में कुछ लोग काम करने आए। उन्होंने पाया, ग्रामीण समाज में पाँच तरह के लोग होते हैं । गुरु ,प्रेरक, सज्जन, अवसरवादी और काम बिगाड़ा।
जब ये पाँचों एक साथ मिलकर काम करते हैं तो काम सफलता पूर्वक हो सकता है। ठीक उसी प्रकार जैसे पाँचों उंगलियों का मिलकर काम करना आवश्यक होता है। पर यदि इनमें फूट रहती है तो काम नहीं हो पाता।
कैसे होते हैं ये पाँच प्रकार के लोग?
पहले प्रकार के लोग गुरु जैसे होते हैं उनसे हम काम करना सीखते हैं।
दूसरे प्रकार के लोग प्रेरक होते हैं जो हमको रास्ता दिखाते हैं। इनसे प्रेरित होकर हम काम करते हैं।
तीसरे सज्जन व्यक्ति होते हैं। गाँव में इनकी संख्या सबसे ज़्यादा होती है। ये लोग अस्सी प्रतिशत होते हैं। ये लोग काम से काम रखने वाले होते हैं। काम अच्छा हो रहा है तो बढ़िया, बुरा हो रहा है तो भी बढ़िया। वे किसी से मतलब नहीं रखते ,अपने काम में मस्त रहते हैं। ये किसान हो सकते हैं। मजदूर हो सकते हैं। गाँव में ईमानदारी के साथ काम करते है।
चौथे प्रकार के लोग अवसर वादी होते हैं। ये मौका तलाशते रहते हैं । जहाँ पर कुछ मिलने की संभावना होती है, ये वहाँ पर पहुँच जाते हैं।
पाँचवें और अंतिम प्रकार के होते हैं ‘कामबिगाड़ा’लोग। ये सबसे खतरनाक होते हैं। ये वे लोग होते हैं जो कुछ काम नहीं करते । जहाँ पर अच्छा काम हो रहा होता है उसे भी बिगाड़ने के लिए पहुँच जाते हैं। वे चाहते हैं कि गाँव में हो रहे अच्छे काम को कैसे खराब किया जाए।
जब जब ‘तरुण भारत संघ’ के लोग किशोरी गाँव में आए, तब तब उनको इन पाँच प्रकार के लोगों के बारे में जानकारी मिली। उनको समझ आ गया था यदि हमें गाँव में काम करना है तो सबसे पहले इन पाँच प्रकार के लोगों में सामंजस्य बैठाना होगा। ये कैसे होगा?
बहुत विचार करने के बाद उन्होंने तय किया, पहले गुरू को पकड़ना होगा। गुरु अच्छा मार्गदर्शक भी होगा। उन्होंने पहले गुरु को पकड़ा। उसके बाद उन्होंने प्रेरक को पकड़ा,जो सबको प्रेरणा देता है।
सज्जन लोग जब गुरु और प्रेरक लोगों को देखते हैं, तो उनको समझ आ जाता है ,गाँव में कुछ अच्छा काम होने वाला है। तो वे भी जुड़ जाते हैं। फिर क्या है? इन तीनों के मिलने से गाँव में अच्छे काम होने शुरु हो जाते हैं।
गाँव में अच्छे काम होते देखकर अवसरवादी भी अपने को रोक नहीं पाता। वह अपने आप चला आता है। ये चारों मिलकर काम करने लगते है। ये चारों तो एक हो जाते हैं।
अब बचे रह जाते हैं कामबिगाड़ा तरह के लोग ! इनको नकारा नहीं जा सकता। यदि ऐसा किया तो ये तोड़-फोड़ और नुकसान पहुँचाने का काम शुरु कर सकते हैं। वैसे भी ये अवसरवादियों के साथ चिपके रहते हैं सो चुपचाप इनको भी काम में लगा लिया जाता है। फिर गाँव में काम शुरु हो जाता है ।
काम तो शुरु हो जाता है पर एक बात का विषेश ध्यान रखा जाता है। कामबिगाड़ा तरह के आदमियों को निर्णय प्रकिया में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि यदि ऐसा किया गया तो वह अधिक परेशान कर सकते हैं। जैसे ही अवसर वादी आता है तो यह भी उसके साथ पीछे आने को तैयार रहते हैं।
बस फिर क्या होता है ये पाँचों प्रकार के व्यक्ति मिल जाते हैं और गाँव में आसानी से काम होने लगता है। यही नहीं सकारात्मक काम होने लगता है । अब चाहे जंगल बनाने का काम हो या जोहड़ बनाने का काम हो सब आसानी से होने लगते हैं। सभी लोगों को भान हो जाता है कि इन पाँच प्रकार के लोगों के मिलन व परस्पर सहयोग से ही गाँव का विकास संभव है।
(‘तरुण भारत संघ’ के सुरेश रैकवार द्वारा सुनाई कथा पर आधािरत, अलवर, राजस्थान)