कणसारी माता

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डहाणू की वारली जन-जाति में कणसारी माँ को अन्न की देवी माना जाता है।

            एक बार आदिवासी पामलाई रायी (कणसारी देवी) माता ने भिखारिन का रूप धारण किया। वे जानबूझकर गन्दी बनकर गाँव में आईं। वे रूप बदल कर देखना चाहती थीं, गाँव में सब कैसा चल रहा है। गाँव के लोगों की परीक्षा भी लेना चाहती थीं। उनके चारों ओर मधुमक्खियाँ  चिपकी हुई थीं ।

            उनको इस रूप में देखकर गाँव के लोग पहचान नहीं सके। वे समझे कोई ग़रीब भिखारिन आयी है।  गाँव के लोग कणसारी माता का यह रूप देखकर उनसे घृणा करते हैं। वे उनसे कहते हैं तू बहुत गंदी है यहाँ से भाग जा। उनपर पत्थर वगैरह भी फेकते हैं। घर के दरवाज़े बंद कर लेते है। उनको पीने के लिए पानी तक नहीं देते। खाने को खाना भी नहीं देते।

            कणसारी माता कई घरों में जाती हैं। छोटे घरों में भी जाती है जहाँ के लोग  उनको भगा देते हैं। कोई उनकी मदद नहीं करता। अंत में गांव में रहने वाला एक साहूकार उनको पनाह देता है। वह साहूकार उनको अनाज देता है। खाना भी देता है। कणसारी देवी उससे प्रसन्न हो जाती हैं। वे साहूकार को आशीर्वाद देती हैं। वे कहती हैं अगर तुम कभी काम नहीं भी करोगे तब भी तुम्हारे पास हमेशा अन्न रहेगा। जिन लोगों ने उनका निरादर किया था, वे उनका बुरा होने का श्राप देती हैं। वे उनसे कहती हैं, तुम लोगों ने मेरा अपमान किया है। तुम लोग चाहे कितना भी काम करोगे पर तुम्हारे पास अनाज कम ही पड़ेगा।

            इसलिए आज भी लोग अन्न का अपमान नहीं होने देते। देवी कणसारी माँ की पूजा करते हैं। वारली जाती के लोग अन्न रखने के स्थान का भी बहुत ध्यान रखते हैं।

(डहाणू, महाराष्ट्र)

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