Proficiency lev
el: Intermediate High
Objectives: Students will be able to:
- review (summarize and analyze the plot) of the movie
- describe the characters of the film
- compare and contrast stereotypes about boys vs. girls
- explain the film and its message in a review
Language Targets: Students will be able to use:
- conditional sentences: e.g. agar vahaaN nahiiN jaatii to samasyaa kaa hal nahiiN hotaa
- conjunct verbs: nominal – X-kii madad karnaa, X-kii shikaayat karnaa, X-kaa intazaar karnaa and adjectivial – (X-ko) saaf karnaa, (X-ko) baRaa karnaa
- conjunct verbs in the past tense and distinguish transitivity (+karnaa) vs. intransitivity (+honaa)
Learning scenario:
1. Students watch the movie at home. They fill out a graphic organizer — kahaanii, kaon, kyaa, kahaaN, kyoN, kab.
2. Instructor provides a vocab list. In groups students share and expand their graphic organizer.
3. Instructor goes over the language structures and asks the students in groups to work on the summary of the film based on the Freitags Pyramid while using the new structures.
4. Students in pairs discuss and make a list of stereotypes about boys and girls.
5. In new pairs they compare and contrast the stereotypes on a Venn Diagram.
6. Students work on the first draft of the film review. The instructor provides input when needed.
7. Students read the film review (below) and highlight structural elements, expressions and/or phrases they will incorporate in their own review.
Suggestions for follow up: Female Feticide
Review जलपरी: http://www.livehindustan.com/news/entertainment/filmreview/article1-story-28-93-257770.html
- कलाकार : लहर खान, प्रवीण डबास, कृषंग त्रिवेदी, सुहासिनी मुले, तनिशा चटर्जी, हर्ष मायर
- निर्देशक : निला माधब पांडा
- निर्माता : सुशीलकुमार अग्रवाल
- संगीत : मिडिवियल पंडित्ज, पियूण मिश्र और आशीष चौहान
- गीत : पीयूष मिश्र और प्रतीक मजूमदार
पिछले साल आयी फिल्म ‘आई एम कलाम’ की सफलता के बाद निर्देशक निला माधब पांडा इस साल एक और बाल फिल्म लेकर आये हैं, जिसका नाम है ‘जलपरी : दि डेजर्ट मरमेड’। इस फिल्म में उन्होंने एक बार फिर एक सामाजिक मुद्दे को उठाया है। आई एम कलाम जहां शिक्षा के महत्व को दर्शाती थी, वहीं जलपरी में कन्या भ्रूण हत्या के साथ-साथ समाज में बालिकाओं को लेकर फैली कुरीतियों और प्रथाओं की ओर भी इशारा किया गया है।
फिल्म की कहानी दिल्ली से सटे हरियाणा के एक काल्पनिक गांव की है, जहां देव (प्रवीण डबास) अपने बच्चों श्रेया (लहर खान) और सैम (कृषंग त्रिवेदी) के साथ आया है। देव के ये दोनों बच्चे शहर में पले-बढ़े हैं। गांव के रहन-सहन की उन्हें आदत नहीं है। और फिर उसकी बड़ी बेटी श्रेया तो बिल्कुल टॉमबॉय है। वह लड़कों की तरह दिखती है। उनके जैसे कपड़े पहनती है और उसे बहुत बुरा लगता है जब उसे कोई लड़की समझता है। इसलिए देव बच्चों की देखभाल के लिए उनकी दादी यानी अपनी मां (सुहासिनी मुले) को भी साथ ले जाता है।
शुरुआत में बच्चों को गांव की जीवनशैली कुछ पेचीदा लगती है, लेकिन जल्द ही वह वहां अपने कुछ दोस्त बना लेते हैं। देव गांव में एक अस्पताल बनाना चाहता है। ग्राम पंचायत का उसे सहयोग मिलता है और जल्द ही जमीन भी मिल जाती है। लेकिन पानी की समस्या और गांव के एक वैद्य की खुन्नस का उसे सामना करना पड़ता है। उधर, श्रेया, जो कि गांव के बच्चों के साथ घुलने-मिलने की कोशिश करती है, को आये दिन लड़की होकर लड़कों की तरह रहने का ताना सुनने को मिलता है। इसकी एक वजह ये भी है कि श्रेया की उम्र की गांव में एक भी लड़की नहीं है। वह अकेली लड़की है गांव में, जिसे कंजक बनाकर एक से दूसरे घर ले जाया जाता है। गांव के बच्चों के साथ मिलकर खेल-खेल में एक दिन श्रेया और सैम उस पुराने खंडहर की ओर चले जाते हैं, जहां कहा जाता है कि एक डायन रहती है। उनका एक दोस्त आदित्य (हर्ष मायर) उन्हें बताता है कि वो डायन बच्चों को खा जाती है। शहर से आई श्रेया को ये बात हजम नहीं होती और वह डायन का पर्दाफाश करने की ठान लेती है।
एक दिन जब श्रेया पुराने खंडहर की ओर जाती है और देव भी उसे ढूंढ़ने के लिए जाता है तो पता चलता है कि वहां गांव की गर्भवती महिलाओं का जबरदस्ती गर्भपात कराया जा रहा है। श्रेया की मदद से देव इस रहस्य से पर्दा उठाता है। अपनी विषय-वस्तु के लिहाज से यह फिल्म चौंकाती है। बच्चे साहसिक कार्य कर जाते हैं, लेकिन कैसे, यह इस फिल्म में देखने वाली चीज है। निर्देशक ने एक अहम मुद्दे की ओर इशारा किया है, जिसके लिए बच्चों के इर्द-गिर्द कहानी बुनी गयी है। श्रेया ने हर्ष मायर जैसी अच्छी प्रस्तुति दी है। हर्ष को फिल्म आई एम कलाम के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार (बाल कलाकार) मिला था। फिल्म में पीयूष मिश्र के एक गीत ‘बरगद के पेड़ों पे शाखें पुरानी..’ को कई बार दिखाया गया है, जो दिल को छू लेता है। गंभीर सिने प्रेमियों के लिए यह फिल्म इस हफ्ते एक सौगात बनकर उभरी है।
