बहुत पुरानी बात है। एक शिक्षक डहाणू गाँव की एक पाठशाला में पढ़ाने के लिए आये। गांव छोटा था और पाठशाला घर से बहुत दूर थी। उनका विद्यालय उनके घर से ७ किलोमीटर दूरी पर था। रोज़ पाठशाला जाने में उनको परेशानी होती थी। आने जाने के लिए कोई भी साधन उपलब्ध नहीं था। उनको पता था कि रास्ता सुनसास है। उस रास्ते पर कोई आता जाता नहीं है। कभी-कभी डर भी लगता था। उन्होंने सोचा कुछ ना कुछ रास्ता तो निकालना होगा।
नौकरी करते-करते उन्होंने पैसे बचाए और एक मोटरसाईकल ख़रीदी। उनको लगा अन्य लोगों को भी उनकी भाँती आने-जाने में परेशानी होती होगी। उन्होंने निश्चय किया कि जो भी उस रास्ते से जाएगा वे उसको अपनी मोटरसाईकल पर बैठाकर उसके गंतव्य तक तो पहुँचाएँगे। इस प्रकार उन्होने बहुत सारे लोगों की मदद की।
कुछ दिनों के बाद उनको एक बहुत ही बुरा अनुभव हुआ। अन्य दिनों की भाँती उस दिन भी उन्होंने एक आदमी की मदद की। पर वह आदमी ठीक नहीं था। रास्ते में उसने एक चाकू निकाल लिया और गुरु जी की गर्दन पर रख दिया। उसने गुरुजी से कहा, ‘यह गाड़ी मुझे दे दो नहीं तो मैं तुम्हें जान से मार डालूँगा’।
गुरु जी बुद्धिमान व्यक्ति थे उन्होंने कहा मैं गाड़ी तो तुझे दे दूँगा, पर एक शर्त है। व्यक्ति बोला ‘क्या”? गुरुजी बोले “तुम किसी को यह नहीं बताना कि तुमने यह गाड़ी मुझसे कैसे ली है और मैं भी यह किसी को नहीं बताऊँगा कि मेरी गाड़ी तुमने मुझसे कैसे ली”। व्यक्ति बोला ठीक है। वह आदमी अपनी जीत पर बहुत खुश था। उसने सोचा कि वह गाड़ी को बेच देगा और मालामाल हो जाएगा।
सबसे पहले वह गाड़ी को एक कबाड़ी के पास लेकर गया। कबाड़ी ने जब गाड़ी को देखा तो वह पहचान गया कि गाड़ी किसकी है। उसने कहा, “यह तो गुरुजी की गाड़ी है। तुम्हारे पास कैसे आई”? उस आदमी ने कहा गुरु जी ने मुझे बेचने के लिए भेजा है। कबाड़ी को उसकी बात पर भरोसा नहीं हुआ। उसने गाड़ी को नहीं ख़रीदा।
फिर वह आदमी एक होटल में गया। वहाँ उसने नाश्ता किया और गाड़ी को बेचने का प्रयास किया। होटल वाले ने भी गुरु जी की गाड़ी को पहचान लिया। उसने पूछा, “गुरु जी की गाड़ी तेरे पास कैसे आई? आदमी ने फिर से झूठ बोला । उसने कहा, “गुरु जी ने कहा है कि तुम होटल जाकर नाश्ता कर लो”। होटल वाले को भी उसकी बात पर भरोसा नहीं हुआ।
उसके बाद उसने कई जगह गाड़ी को बेचने का प्रयास किया पर किसी ने उससे गाड़ी को नहीं ख़रीदा । अब तक उसे गुरुजी की महिमा का पता चल गया था। उसने गाड़ी को गुरुजी को वापिस करने का निश्चय किया। रात के अंधेरे में उसने गुरु जी के घर पर गाड़ी छोड़ दी। सुबह गुरु जी उठे। वे सोच में थे अब क्या करेंगे? पाठशाला कैसे जाएंगे? गाड़ी तो उनके पास नहीं रही। क्या फिर से नयी गाड़ी ख़रीदने के लिए पैसे जमा करें। वे सोचते हुए घर से बाहर आए। तभी उनको घर के बाहर गाड़ी खड़ी हुई दिखी। वे हैरान रह गये।
उत्सुकतावश वे चोर से मिले। उन्होंने उससे पूछा, “ऐसा क्या हुआ जो तुमने गाड़ी मेरे घर के बाहर खड़ी दी”। चोर बोला,“आपकी गाड़ी है या अमिताभ बच्चन !! जिसको सारा शहर पहचानता है”। गुरु जी ने बहुत सारे लोगों की मदद की थी । गुरु जी की अच्छाई ने उनको उनकी गाड़ी वापिस दिला दी।
इस कहानी से शिक्षा मिलती है, अच्छाई का बदला अच्छाई से मिलता है।
Glossary: | Grammar: |
परेशानी (f.): trouble उपलब्ध: available सुनसान: lonely, empty (in the context of roads/areas) मालामाल: rich कबाड़ीवाला (m.): a person who collects junk for the purpose of selling the same later on सकपका: unpleasantly surprised परख (f.): examine उत्सुकतावश: out of curiosity दिनचर्या (f.): daily routine/ things one does on a daily basis |
Honorific constructions: The use of plural in reference to one person to express respect: he/she (nominative): वे ; he/she (ergative): उन्होंने; he/she (accusative/dative): उन्हें /उनको ; he/she (instrumental): उनसे; he/she (genitive): उनका/उनकी/उनके
Conjunctive participle: verb stem + कर (to create complex sentences joining two clauses with the same subject ) |