Film Project: Toilet Ek Prem Katha

Lesson designed with support by Sarfaraz Farooque, Utsab Ray and Rajni Bhargava

Proficiency Level: Intermediate Mid                                                               

Time: 4X75 min.

Objectives: Students will be able to:

  • describe the issue from sanitary, logistical, health and social norms perspective
  • explain different individuals’ pros and cons to introducing toilets in the houses
  • report on the story as a journalist
  • write a review

Language Targets: No new structures are introduced, students recycle the ones they learned a priori.

Learning scenarios — Students: 

  • view a slide show with several photos of public toilets and guided by the instructor guess what the issue is
  • discuss in groups what they think and know about the problem
  • create a word bank on a google doc and report in front of the class — developing a larger glossary to work with
  • in groups they put the vocabulary list in 4 categories on a google doc (which they decide on and create)
  • view the movie trailer and predict what the movie is about by answering the following questions:

1. यह मूवी किसके बारे में है?

  1. लड़के की शादी के बारे में
  2. गाँव में शौच के बारे में
  3. लड़की के अधिकार के बारे में
  4. पंडित जी के बारे में

2. यह कहानी रूमानी, सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक मुद्दे पर है? क्यों ऐसा लगता है?

3. इस मूवी की कहानी क्या हो सकती है? पाँच वाक्यों में कहानी के बारे में लिखिये।

4. इस कहानी के मुख्य पात्र कौन कौन लगते हैं?

5. क्या यह मूवी अच्छी होगी या नहीं और अगर हाँ या नहीं तो क्यों?

  • play kahoot
  • view the following movie segments 
Clip  No. Start Time (hh:mm:sec) End Time (hh:mm:sec) Details of the scene
1 00:19:33 00:21:23 Keshav follows Jaya.
2 00:43:29 00:44:20 Keshav and Jaya get married.
3 00:47:35 00:52:59 The women from the village come to call Jaya for loTaa party (going for the toilet in the open field).
4 (Optional) 01:01:53 01:03:33 Jaya encounters her father-in-law in the field, embarrassing episode.
5 01:07:07 01:14:52 Keshav finds a solution. Jaya uses the train’s toilet. She gets locked and leaves for her parents’ house.
6 01:23:53 01:27:16 Keshav is locked up in the police station for stealing a toilet. Dadi goes to Jaya’s house.
  • tell the story of each segment from an assigned character’s point of view as if it happened to them or witnessed what happened 
  • argue in an assigned role for or against the introduction of toilets and develop a list of pros and cons
  • participate in a conversation as a character at a Talk Show Bolo Ji dedicated to the issue (a traditional female character, the father, main male and male female character).

Note: Higher level students read an article to support with 3 points their arguments.

  • submit homework: in the role of a/n:
  1. activist, lower level students produce a brochure educating the rural communities about the reasons to use toilets;
  2. film character students write to local officials about the issue;
  3. journalist higher level students report the story.

Note: Students are assigned to use:

  • as many of the vocab items as possible (they get bonus points for each one) 
  • at least twice each of the grammar units introduced in the previous session. 
  • develop the script in groups — in 10 years what happened to the community?
  • in different groups they rework the ending to combine elements of previous project and develop a story board.
  • participate in a gallery walk and share with the presenter two points/elements they like and explain why.
  • create a movie review: in pairs they read assigned excerpts from the film reviews below and answer questions — then they change partners and exchange the information they read to put together their own film review (in audio file and in writing) which they will send to the local schools’ interactive news bulletins and recommend the film to be used for teaching.
https://www.amarujala.com/columns/opinion/journey-of-swachchh-bharat

Evaluation Rubrics

Materials:

Glossary for article: https://www.amarujala.com/columns/opinion/journey-of-swachchh-bharat

Film Review:

१. दोनों लेखों में जो दोनों रिव्यू प्रस्तुत की गयी है क्या उन में कोई अंतर/फर्क है? समझाये।

२. दोनों लेखों के अनुसार फिल्म की सब से बड़ी उपलब्धि/ सफलता कौनसी है और क्यों?

https://navbharattimes.indiatimes.com/movie-masti/movie-review/toilet-ek-prem-katha-movie-review-in-hindi/moviereview/60014569.cms

‘टॉइलट: एक प्रेम कथा‘ मूवी रिव्यू
Meena Iyer, टाइम्स न्यूज नेटवर्क, Thu,17 Aug 2017 18:39:00 +05:30
हमारी रेटिंग: 4 / 5
पाठकों की रेटिंग: 5 / 5
कलाकार: अक्षय कुमार, भूमि पेडनेकर, अनुपम खेर, सना खान
निर्देशक: श्री नारायण सिंह
मूवी टाइप: Drama
अवधि: २ घंटा ३५ मिंट
कहानी: जिद्दी केशव (अक्षय) खुले विचारों वाली जया (भूमि) से दिल लगा बैठता है जो कि उत्तर प्रदेश में उसके पास वाले गांव की रहने वाली है। वे शादी भी करते हैं, लेकिन केशव उसे यह नहीं बता पाता है कि उसके घर में टॉइलट नहीं है और यही वह वजह बन जाती है, जिसे लेकर जया तलाक का मामला दर्ज कराती है।

रिव्यू: हममें से कइयों के लिए घर में टॉइलट होना भले कोई बड़ी बात न लगती हो, लेकिन यह एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि आज भी हमारे देश में 58% भारतीय खुले में शौच के आदी हैं और यकीन मानिए वे ऐसा कर के खुश नहीं हैं। निर्देशक श्री नारायण सिंह ने इस फिल्म के जरिए समाज को एक आईना दिखाने की कोशिश की। फिल्म के जरिए हमें दिखाया गया है कि कैसे हमारे अंधविश्वासी ग्रामीणों ने, आलसी प्रशासन और भ्रष्ट नेताओं ने मिलकर हमारे भारत को गंदगी का सबसे बड़ा तालाब बना रखा है। यहां खासकर महिलाओं के साथ जानवरों से भी ज्यादा असंवेदनशील तरीके से पेश आया जाता है। खेतों और खुले में जाकर शौच करने की हमारी पुरानी आदत पर व्यंग्य करते हुए यह फिल्म बड़े ही मजेदार ढंग से फिल्माई गई है।

‘टॉयलट: एक प्रेम कथा एक मजबूत लव स्टोरी भी है, जो काफी बैलेंस्ड है। यह आपका मनोरंजन करने के साथ-साथ आपको एजुकेट भी करती है। राइटर जोड़ी सिद्धार्थ-गरिमा हमें अपनी इस मजेदारकहानी से एक ऐसे सफर पर ले जाती है जो इस मुद्दे को लेकर जागरूक करती है कि हमारे घर में महिलाओं के लिए टॉइलट का होना कितना जरूरी है। इस कहानी में टॉइलट की वजह से फिल्म के लीड किरदार केशव और जया के बीच लड़ाई हो जाती है और इस वजह से पंडित जी (सुधीर पांडे) और उनके बड़े बेटे के बीच भी ठन जाती है। दो भाइयों नरु (दिव्येंदु) और केशव के बीच जो प्यार भरा रिश्ता है, वह भी देखने लायक है। गांव में शौचालय के लिए लीड किरदार की जो लड़ाई है, वह याद रखने लायक है। सरपंच से लेकर चुलबुले काका (अनुपम खेर) तक के साथ यूपी के देहातों की हर छोटी-बड़ी बातों को ध्यान में रखकर इसे फिल्माया गया है। वैसे, फिल्म का सेकंड हाफ इस मुख्य समस्या का कारण बताता है और इसके कारण काफी लेक्चरबाजी भी होती है।

यह पूरी व्यंग्य भरी कहानी अक्षय कुमार के कंधों पर टिकी है। एक बार फिर अक्षय अपने शानदार परफॉर्मेंस से दर्शकों का दिल जीतने के लिए तैयार हैं। इस फिल्म को मिले स्टार्स में से आधा स्टार भूमि के लिए, जो जया के रोल में एकदम परफेक्ट दिख रही हैं। दिव्येंदु की कॉमिक शानदार है। पांडे और खेर की मौजूदगी को आप कहीं भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। फिल्म में कई ऐसे फ़नी मोमेंट्स हैं, जो आपके इमोशन को छूते हैं। ‘हंस मत पगली’, ‘बखेड़ा’, ‘गोरी तू लठ मार’ जैसे म्यूज़िकल ट्रैक एस फिल्म के बोनस पॉइंट हैं।
अक्षय कुमार की ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा‘ ब्लॉकबस्टर साबित हो चुकी है। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर धमाकेदार कलेक्शन किया है। खास बात यह है कि भारत में फिल्म ने अब तक 130.20 करोड़ की कमाई कर ली है। यानि की दो से तीन दिनों में फिल्म 131 करोड़ का आंकड़ा भी पार कर लेगी।

अक्षय कुमार की ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा‘ ब्लॉकबस्टर साबित हो चुकी है। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर धमाकेदार कलेक्शन किया है। खास बात यह है कि भारत में फिल्म ने अब तक 130.20 करोड़ की कमाई कर ली है। यानि की दो से तीन दिनों में फिल्म 131 करोड़ का आंकड़ा भी पार कर लेगी।
http://hindi.indiawaterportal.org/node/57094

टॉयलेट, एक प्रेम कथा – Toilet, Ek Prem Katha : शौच और सोच के बीच एक व्यंग्यकथा
Author:  उमेश कुमार राय
निर्देशक: श्री नारायण सिंह
लेखक: सिद्धार्थ-गरिमा
कलाकार: अक्षय कुमार, भूमि पेडणेकर, सुधीर पांडेय और अनुपम खेर
मूवी टाइप: ड्रामा
अवधि: 2 घंटा 35 मिनट

आज भी खुले में शौच बड़ा मुद्दा है, अभी भी देश में साठ फीसदी से ज्यादा लोग खुले में शौच के आदी हैं। ‘खुले में शौच’ एक आदत है, साथ ही एक सोच है, जिसने भारत को गंदगी का नाबदान बना रखा है। फिल्म खेतों और खुले में शौच करने की आदत पर करारा व्यंग्य है।

कहानी की शुरुआत:

मथुरा का नंदगाँव अभी पूरी तरह नींद की आगोश में है। रात का अंतिम पहर खत्म होने में कुछेक घंटे बाकी हैं। महिलाएँ हाथों में लोटा और लालटेन लेकर निकल पड़ी हैं। रास्ते में वे एक-दूसरे से खूब हँसी-मजाक करती हैं। यह वक्त उनके लिये आजादी का वक्त है। महिलाएँ वे सारी बातें इस वक्त कर लेती हैं, जो अपनी ससुराल में पति और सास के सामने नहीं कर पातीं। दिनचर्या में शामिल इस मौके को वे ‘लोटा पार्टी’ कहती हैं। असल में वे मुँह छिपाये अंधेरे में शौच करने के लिये खेतों की ओर निकली हैं, क्योंकि उनके घरों में शौचालय नहीं है।

फिल्म ‘टॉयलेटएक प्रेम कथा’ इसी सीन के साथ शुरू होती है। ऐसा सीन भारत के किसी भी गाँव में दिख सकता है। इस दृश्य से शुरू होकर परत-दर-परत कहानी खुलती है और वहाँ तक पहुँच जाती है जहाँ फिल्म के नायक अक्षय कुमार यानी केशव और नायिका भूमि पेडनेकर यानी जया के बीच तलाक की नौबत आ जाती है।

फिल्म की नायिका पढ़ी-लिखी है और कभी भी खुले में शौच करने नहीं गयी है। उसकी शादी केशव के साथ होती है तो पहली सुबह ही उसे पड़ोस की महिलाएँ लोटा पार्टी में शामिल होने के लिये बुलाने आती हैं। उस वक्त उसे पता चलता है कि उसकी ससुराल में शौचालय नहीं है, तो वह विद्रोह कर देती है।

शुरुआत में नायक अपनी पत्नी को समझौता करने की सलाह देता है, लेकिन जब वह किसी भी तरह समझौता करने से इनकार कर देती है, तो फिल्म का नायक मध्ययुगीन सभ्यता और संस्कृति की चादर ओढ़े समाज से लड़ने निकल पड़ता है।

अंधविश्वास और कुरीतियों को संस्कृति मानने वाले इस समाज में उसका पिता भी है जिनके लिये खाते वक्त शौच की बात करना भी पाप है। वह किसी भी सूरत में अपने घर में शौचालय नहीं बनने देना चाहते हैं। उनका तर्क है कि जिस आंगन में तुलसी के पौधे हों, उस आंगन में शौचालय कैसे हो सकता है। समाज में गाँव के बुजुर्ग हैं, जो मनुस्मृति का हवाला देते हुए यह कहते हैं कि घर से बहुत दूर शौच करना चाहिए, फिर घर में शौचालय बनाकर वे अपनी संस्कृति और सभ्यता कैसे खत्म कर सकते हैं। वे महिलाएँ हैं, जो रोज किसी पुरुष द्वारा शौच करते वक्त देख लिये जाने का खौफ लेकर खेतों में जाती हैं, लेकिन घरों में शौचालय बनाने की मांग को बेवकूफी समझती हैं।

फिल्म का निर्देशन श्री नारायण सिंह ने किया है। यह उनकी पहली फिल्म है। उन्होंने शौचालय के इर्द गिर्द घूमती कहानी को एक इंटरटेनर की शक्ल देकर उम्मीदें जगा दी हैं।

इंटरवल से पहले फिल्म में रोमांस है और शौचालय के लिये तरह-तरह के जुगाड़ हैं। इन्हीं जुगाड़ों में एक जुगाड़ नायक नंदगाँव स्टेशन पर सात मिनट के लिये रुकनेवाली ट्रेन को बनाता है। वह अपनी पत्नी को रोज सुबह बाइक पर बिठाकर नंदगाँव स्टेशन ले जाता है और ट्रेन आते ही उसकी पत्नी ट्रेन के टॉयलेट में जाकर निपट लेती है और घर लौट आती है। ऐसा कई बार करती है और सबकुछ नॉर्मल तरीके से चल रहा होता है कि एक दिन ट्रेन के टॉयलेट में जब होती है तो हॉकर भारी-भरकम सामान टॉयलेट के गेट के पास रख देता है जिस कारण वह ट्रेन से उतर नहीं पाती और अपने मायके चली जाती है। यह सीन फिल्म का एक बड़ा टर्निंग प्वाइंट है जब नायिका यह तय कर लेती है कि जब तक घर में शौचालय नहीं बन जाता है, तब तक वह अपनी ससुराल नहीं लौटेगी। इसी सीन के साथ फिल्म इंटरवल पर पहुँच जाती है। इंटरवल के बाद है नायक और नायिका का शौचालय के लिये संघर्ष।

केशव पहले पंचायत में शौचालय की बात रखता है लेकिन वहाँ भारी विरोध का सामना करना पड़ता है। इसके बाद वह सरकारी महकमे का चक्कर लगाता है, तो उसे पता चलता है कि सरकार तो कोशिश कर रही है लेकिन लोग खुद शौचालय के लिये तैयार नहीं हैं जिस कारण शौचालय योजना में भारी घोटाला हो गया है।

बहरहाल, फिल्म में घोटाले पर कोई खास फोकस नहीं है। पूरा फोकस शौचालय पर ही है। कुछ घटनाक्रम के बाद नंदगाँव में सार्वजनिक शौचालय बनाने पर सरकारी मुहर लग जाती है। उधर, केशव और जया दोबारा मिल जाते हैं। केशव के पिता को भी अपनी गलती का एहसास हो जाता है। शौचालय के साथ सामूहिक सेल्फी के शॉट के साथ फिल्म खत्म होती है।

फिल्म में लोटे को बिंब के तौर पर इस्तेमाल किया गया है। खुले में शौच की गंभीरता को बताने के लिये बदायूं और झारखंड में खुले में शौच करने गईं लड़कियों के साथ हुई जघन्य घटनाओं का भी जिक्र किया गया है।

पूरी फिल्म वर्ष 2013 में हुई एक सत्य घटना पर आधारित है। कहानी को नाटकीयता देने के लिये कई चरित्र गढ़े गये हैं और हल्के-फुल्के ढंग से बड़ा संदेश देने की कोशिश की गयी है। फिल्म देखकर साफ लगता है कि इसका निर्माण केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत अभियान को प्रमोट करने के लिये किया गया है क्योंकि कई डायलॉग केंद्र सरकार के नारों से जुड़े हुए हैं।

क्यों देखें: ‘टॉयलेट: एक प्रेम कथाटॉयलेट या संडास जैसे मुद्दे पर एक बहस छेड़ती है। इस मुद्दे पर फ़िल्म बनाने के साहस की प्रशंसा की जानी चाहिए। एक्टिंग की बात करें, तो सभी ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है, मगर पंडितजी यानी केशव के पिता के किरदार में सुधीर पांडेय ने गजब ढा दिया है।

क्यों न देखें: फ़िल्म काफी लंबी हो गई है। बोझिलपन से निजात पाई जानी थी। हाँ, खुले में शौच के सामाजिक नुकसान को तो फिल्म में दिखाया गया है लेकिन स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक असर को फिल्म में जगह नहीं मिली है, जो खलती है। सेकेंड हाफ के कुछ दृश्यों में ज्ञान का ओवरडोज दिया गया है, जो कुछ ज्यादा ही नाटकीय लगता है और अच्छे भोजन में कंकड़ का एहसास करा देता है।

शौचालय की समस्या शहरों से ज्यादा गाँवों में है। करीब 60 प्रतिशत ग्रामीण घरों में ही निजी शौचालय उपलब्ध हैं, इसलिये जरूरी है कि यह (फिल्म) गाँवों तक पहुँचे, न कि केवल शहरी आबादी के लिये एक मनोरंजक फिल्म बनकर रह जाये।

Sample of student work: