भानगढ़ भुतहे किले का सच

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बहुत पुरानी बात है। तब ‘भानगढ़’ किले पर राजा माधो सिंह का राज था। उनकी रानी का नाम रत्नावती था। रत्नावती पूजा पाठ करने वाली स्त्री थीं। वे मीराबाई की भाँति भक्त प्रकृति की थीं। उसी गाँव में सावंरी तंत्र-मंत्र को जानने वाला एक तांत्रिक हुआ करता था। उसका नाम सेंधु सेवड़ा था। उसने रानी को एक बार देखा तो वह रानी पर मोहित हो गया।

सेंधु सेवड़ा तंत्र-मंत्र जानता था। तंत्र-मंत्र डालकर किसी को भी अपने वश में कर लेता था। एक बार रानी की दासी तेल लेने गयी थी। सेंधु सेवड़ा दुकान पर बैठा था। उसने सोचा यही अच्छा मौका है रानी को पाने का। उसने अभिमंत्रित करके तेल में कुछ डाल दिया। उसने कहा इस तेल का जो भी इस्तेमाल करेगा वो मेरे पास आ जाएगा। उसका मानना था रानी इसको लगाएगी और मेरे पास आ जाएगी और मेरे वश में हो जाएगी । दुकान के सामने ऊपर एक चट्टान थी। सेंधु सेवड़ा उस चट्टान पर जाकर बैठ गया।

रानी तो बुद्धीमति थी। उसे तेल में कुछ घूमता हुआ दिखा। वह समझ गयी कि कुछ गड़बड़ है। उसने उस तेल का प्रयोग नहीं किया बल्कि एक बड़ी चट्टान पर सारा तेल डलवा दिया। कहते हैं चट्टान के ऊपर जैसे ही तेल गिरा वह उठकर ऊपर चली गयी और उसने उस तांत्रिक को दबा दिया। वो वहीं खतम हो गया। मरने से पहले तांत्रिक ने श्राप दिया कि इस गाँव को तीन दिनों में खाली कर दो, वरना सब खतम हो जाएगा। सच में एक ही रात में सारा गाँव खाली हो गया था। ऐसा माना जाता है कि जो लोग बच गये थे, वे भूत बन गये और आज भी उन लोगों के भूत इस किले में आते हैं। इस प्रकार इस किले को भुतहा किला कहा जाने लगा।

(सिरस्का अलवर, राजस्थान)

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