Lesson developed by Mamta Tripathi (YHS Fulbright-Hays 2022)
May be followed by lesson on Termites
Unit: Termites in Nature
Student type: HLLs + FLLs
Proficiency Level: Intermediate Mid-High
Age: High school, post secondary
Time: 3X60 mins
Essential Question: How does a story become a legend?
Objectives: By the end of this lesson students will be able to:
- identify the sequence of events of a story that has different time frames
- understand and explain the reason/s for a character’s transformation in a story
- ask a variety of follow up questions to find out what happened before/after the portion of the story piece they will read
- compare and contrast the story narration in the articles and/or videos
- narrate the story taking on the role of another character/element of the story
Language Structures in Focus:
- Sentence connectors किंतु, नहीं तो, जब…. तो, चूंकि… इसलिए, लेकिन, तो, etc.
- Compound verbs as in हो गया, गिर पड़े, हो गए, etc.
- Passive construction ऐसा माना जाता है कि, कहा जाता है कि, etc.
- Metaphors / Idioms – ज्ञान नेत्र, देव ऋषि (देवर्षि), जीवन से हाथ धोना (for differentiation)
Performance Assessment Tasks
- Story Podcast: Students will read the story from any one of the text articles (given under Authentic Resources below) using different tones, styles to show the change of characters and emotions in the story and submit an audio recording.
Sample: Item #4 in Authentic resources
- Role: young children’s storybook writer who is visiting them online/in-person for book signing
- Audience: children in grades 3-8 in a Hindi school
- Format: biographical presentation in 3rd person
- Topic: What made a dacoit transform into a sage?
- Audio Storybook: Using at least 10-12 screenshots from the given videos to capture all essential happenings, rewrite the story as any character or as any element of the story.
Make sure to use-
- 5 passive constructions- ऐसा माना जाता है, कहा जाता है, etc.
- 6 compound verbs- हो गया, गिर पड़े, हो गए, etc.
- 6 sentence connectors- किंतु, नहीं तो, कहा कि, पूछो कि, जब…. तो, चूंकि… इसलिए, लेकिन
- metaphors- ज्ञान नेत्र, देव ऋषि (देवर्षि) (differentiated activity)
Task:
- Role: a character or an element from the story. For example, students can take on the role of Narad muni, Ratnakar, Ratnakar’s family member, a termite in the forest, or the forest.
- Audience: middle school children in a Hindi school
- Format: biographical or autobiographical
- Topic: How the dacoit Ratnakar transformed into sage Valmiki?
Adaptable Rubric for presentational task: https://wp.nyu.edu/virtualhindi/rubric-for-evaluation-presentational/
Learning sequence:
1. Warm up/ pre-assessment: what do students already know about this story, elements of a story in general, termites, their role in nature, etc.
2. Think-pair-share: Observing and talking about images from the story- what do they think is happening, what happened before, what might happen after. Each pair gets a different image. (Teacher may take screen shots from the videos)
3. Jamboard: Interaction with some teacher selected and some student self-selected vocabulary words— categorizing into 2-3 groups based on their own rationale. Students explain the basis of groupings.
4. Jigsaw activity: Reading portions of the story in groups. They will ask a variety of follow up questions to elicit maximum information- किसने कहा? किससे कहा? क्यों कहा? उसके बाद क्या हुआ? उससे पहले क्या हुआ? Students note information gathered from their peers on a graphic organizer/mind map.
5. Grammar Mini lesson on using conjunctions; students identify conjunctions in the story
6. Grammar Mini lesson on passive voice; students identify passive constructions in the story
7. Each home group practices retelling the story using conjunctions and passives, taking turns after every two sentences
8. Pair work: each pair gets the story in 4-5 fragments; they read together to organize the story and form a logical sequence
9. Think-pair-share activity: explain each other how and why the character of Ratnakar transformed to Valmiki
10. Pair work: Students watch a video of the story with the goal to compare and contrast between the textual story with that in the video. They note key points in a graphic organizer and then share with the class.
11. Performance Tasks 1 and/or 2 outlined above.
Authentic Resources:
- https://www.prabhasakshi.com/amp/news/life-story-of-maharishi-valmiki-is-very-interesting-and-inspiring-for-everyone
- Valmiki Jayanti 2019: उस एक घटना से डाकू रत्नाकर बने महर्षि वाल्मीकि
- कहानी वाल्मिकी कि | Story of Valmiki in Hindi
- Valmiki | Kilkariyan | Hindi Stories for Kids | Bedtime Children Stories | Kids Stories
Texts of the stories:
- बड़ी रोचक और सभी के लिए प्रेरणादायक है महर्षि वाल्मीकि की जीवन कथा
By शुभा दुबे | Oct 20, 2021
संस्कृत के प्रथम महाकाव्य ‘रामायण’ की रचना करने वाले महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि भी कहा जाता है। वाल्मीकि जी के आरम्भ काल की कथा बड़ी रोचक है। महर्षि वाल्मीकि का पहले का नाम रत्नाकर था। मान्यता है कि इनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। किंतु डाकुओं के संसर्ग में रहने के कारण ये लूटपाट और हत्याएं करने लगे और यही इनकी आजीविका का साधन हो गया। इन्हें जो भी मार्ग में मिलता वह उनकी संपत्ति लूट लिया करते थे। एक दिन इनकी मुलाकात देवर्षि नारद से हुई। इन्होंने नारदजी से कहा कि तुम्हारे पास जो कुछ है उसे निकाल कर रख दो नहीं तो तुम्हें जीवन से हाथ धोना पड़ेगा।
देवर्षि नारद ने कहा, ”मेरे पास इस वीणा और वस्त्र के अलावा कुछ और नहीं है? तुम लेना चाहो तो इसे ले सकते हो, लेकिन तुम यह क्रूर कर्म करके भयंकर पाप क्यों करते हो?’ देवर्षि की कोमल वाणि सुनकर वाल्मीकि का कठोर हृदय कुछ द्रवित हुआ। इन्होंने कहा, ‘भगवन मेरी आजीविका का यही साधन है और इससे ही मैं अपने परिवार का भरण पोषण करता हूं।’ देवर्षि बोले, तुम अपने परिवार वालों से जाकर पूछो कि वह तुम्हारे द्वारा केवल भरण पोषण के अधिकारी हैं या फिर तुम्हारे पाप कर्मों में भी हिस्सा बंटाएंगे। तुम विश्वास करो कि तुम्हारे लौटने तक हम यहां से कहीं नहीं जाएंगे। वाल्मीकि ने जब घर आकर परिजनों से उक्त प्रश्न पूछा तो सभी ने कहा कि यह तुम्हारा कर्तव्य है कि हमारा भरण पोषण करो परन्तु हम तुम्हारे पाप कर्मों में क्यों भागीदार बनें।
परिजनों की बात सुनकर वाल्मीकि को आघात लगा। उनके ज्ञान नेत्र खुल गये। वह जंगल पहुंचे और वहां जाकर देवर्षि नारद को बंधनों से मुक्त किया तथा विलाप करते हुए उनके चरणों में गिर पड़े और अपने पापों का प्रायश्चित करने का उपाय पूछा। नारदजी ने उन्हें धैर्य बंधाते हुए राम नाम के जप की सलाह दी। लेकिन चूंकि वाल्मीकि ने भयंकर अपराध किये थे इसलिए वह राम राम का उच्चारण करने में असमर्थ रहे तब नारदजी ने उन्हें मरा मरा उच्चारण करने को कहा। बार बार मरा मरा कहने से राम राम का उच्चारण स्वतः ही हो जाता है।
नारदजी का आदेश पाकर वाल्मीकि नाम जप में लीन हो गये। हजारों वर्षों तक नाम जप की प्रबल निष्ठा ने उनके संपूर्ण पापों को धो दिया। उनके शरीर पर दीमकों ने बांबी बना दी। दीमकों के घर को वल्मीक कहते हैं। उसमें रहने के कारण ही इनका नाम वाल्मीकि पड़ा। ये संसर में लौकिक छंदों के आदि कवि हुए। इन्होंने ही रामायण रूपी आदि काव्य की रचना की। वनवास के समय भगवान श्रीराम ने इन्हें दर्शन देकर कृतार्थ किया। सीताजी ने अपने वनवास का अंतिम समय इनके आश्रम में बिताया। वहीं पर लव और कुश का जन्म हुआ। वाल्मीकि जी ने उन्हें रामायण का गान सिखाया। इस प्रकार नाम जप और सत्संग के प्रभाव से वाल्मीकि डाकू से ब्रह्मर्षि बन गये।
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2. Valmiki Jayanti 2019: उस एक घटना से डाकू रत्नाकर बने महर्षि वाल्मीकि
Authored by Rakesh Jha | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: 28 Apr 2022, 8:15 am
रामायण के रचनाकार महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिवस हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। साल 2019 में वाल्मीकि जयंती 13 अक्टूबर दिन रविवार यानी आज मनाया जा रहा है। इस दिन शरद पूर्णिमा का त्योहार भी मनाया जाता है, जो देवी लक्ष्मी का भी प्राकट्य दिवस है।
महर्षि वाल्मीकि का बचपन
ऐसी प्रचलित कथा है कि महर्षि वाल्मीकि का मूल नाम रत्नाकर था और इनके पिता ब्रह्माजी के मानस पुत्र प्रचेता थे। एक भीलनी ने बचपन में इनका अपहरण कर लिया और भील समाज में इनका लालन पालन हुआ। भील परिवार के लोग जंगल के रास्ते से गुजरने वालों को लूट लिया करते थे। रत्नाकर ने भी परिवार के साथ डकैती और लूटपाट का काम करना शुरू कर दिया।
ऐसे रत्नाकर बने डाकू से महर्षि वाल्मीकि
लेकिन ईश्वर ने इनके लिए कुछ और ही सोच रखा था। एक दिन संयोगवश नारद मुनि जंगल में उसी रास्ते गुजर रहे थे जहां रत्नाकर रहते थे। डाकू रत्नाकर ने नारद मुनि को पकड़ लिया। इस घटना के बाद डाकू रत्नाकर के जीवन में ऐसा बदलाव आया कि वह डाकू से महर्षि बन गए। दरअसल जब वाल्मीकि ने नारद मुनि को बंदी बनाया तो नारद मुनि ने कहा कि, तुम जो यह पाप कर्म करके परिवार का पालन कर रहे हो क्या उसके भागीदार तुम्हारे परिवार के लोग बनेंगे, जरा उनसे पूछ लो।
वाल्मीकि को विश्वास था कि सभी उनके साथ पाप में बराबर के भागीदार बनेंगे, लेकिन जब सभी ने कहा कि नहीं, अपने पाप के भागीदार तो केवल तुम ही बनोगे तो वाल्मीकि का संसार से मोह भंग हो गया। और उनके अंदर महर्षि प्रचेता के गुण और रक्त ने जोर मारना शुरू कर दिया और उन्होंने नारद मुनि से मुक्ति का उपाय पूछा।
नारद मुनि से वाल्मीकि को मिला यह मंत्र
नारद मुनि ने रत्नाकर को राम नाम का मंत्र दिया। जीवन भर मारो काटो कहने वाले रत्नाकर के मुंह से राम नाम निकल ही नहीं रहा था। नारद मुनि ने कहा तुम मरा-मरा बोलो इसी से तुम्हें राम मिल जाएंगे। इस मंत्र को बोलते-बोलते रत्नाकर राम में ऐसे रमे कि तपस्या में कब लीन हो गए और उनके शरीर पर कब दीमकों ने बांबी बना ली उन्हें पता ही नहीं चला। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने दर्शन दिए और इनके शरीर पर लगे बांबी को देखा तो रत्नाकर को वाल्मीकि नाम दिया और यह इस नाम से प्रसिद्ध हुए। ब्रह्माजी ने इन्हें रामायण की रचना करने की प्रेरणा दी।
इस तरह वाल्मीकि ने की रामायण की रचना
लेकिन रत्नाकर को यह पता नहीं था कि वह किस तरह से रामायण की रचना करेंगे। एक नदी तट पर सुबह पहुंचे तो क्रौंच पक्षियों के जोड़ों को प्रणय करते देखा। उसी समय एक शिकारी ने तीर से क्रौंच के नर को मार दिया। इससे महर्षि इतने आहत हुए कि उनके मुंह से सहसा एक शाप निकल पड़ा- मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥’ यानी जिस दुष्ट शिकारी ने प्रेम में लिप्त पक्षी का वध किया है उसे कभी चैन नहीं मिलेगा। शाप देने के बाद महर्षि सोच में पड़ गए कि उनके मुंह से यह क्या निकल गया। नारद मुनि उस समय प्रकट हुए और उन्हें कहा कि यही अपका पहला श्लोक है जिससे आप रामायण की रचना करेंगे। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की।
इन्हीं के आश्रम में देवी सीता ने अपने दोनों पुत्रों लव और कुश को जन्म दिया था। इनका आश्रम आज भी नैनीताल के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में स्थित है जिसे सीतावनी के नाम से जाना जाता है।