Student Sample jaati 2

भिन्न प्रकार के लोग भारत के वासी हैं। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सभी लोगों की भाषाओं, पहनाववों, आदतों, आदि में अनेक अंतर देखे जा सकते हैं इतने विशाल देश का एक ही संविधान के अंतर्गत नियंत्रित होने का परिणाम है कि यहाँ भेदभाव की भावना उत्पन्न हुई है। हम भारतीय वैदिक काल की मान्यताओं का संचरण आज तक करते रहते हैं।दलितों को अब भी अछूत और निम्न वर्ग का माना जाता है। गाँवों में दलितों के लिए अलग कुआ बना दिया जाता है जिसमे अधिकतर अशुद्ध पानी होता है। फिर चाहे वो प्यास से मर ही रहे हो, उन्हें ऊँची जात के कुए से पानी पीने भरने पर पाबन्दी है। ऐसी अमानवीय प्रथाओं के कारण दलितों और कुछ ऐसी जातियों की प्रगति नहीं हो पाई है। परंतु पिछड़ी जातियों के आर्थिक विकास के लिए सरकार कई कदम लगातार उठाती रहती है। इन जातियों को शिक्षा की ओर आकर्षित करने के लिए, संविधान में शेड्यूल्ड जातियों के लिये कोटा सिस्टम बनाया गया है। सरकारी नौकरियों, विद्यालयों, और विश्वविद्यालयों में इन जातियों के लोगों के लिए कुछ स्थान सुरक्षित कर दिए जाते है हाल में दलित राजनेताओं ने भी दलितों को हिम्मत दिलाने और उनका उद्धार करने के लिए आवाज़ उठाई है। मायावती, और राम विलास पासवान जी इस नई प्रवृत्ति के मुख्य उदाहरण हैं। लोक सभा की पूर्व अध्यक्ष, मीरा कुमार जी भी एक प्रभावशाली दलित परिवार से हैं।

भारत की प्रमुख अर्थशास्त्रियों में से एक हैं जयति घोष जी। उनका मानना है कि भेदभाव को जड़ से उखाड़ने के लिए, आय की असमानता को घटाना आवश्यक है। इसके लिए हमें भूमि विभाजन की नीतियों को परिवर्तित करना होगा। जमींदारों की जकड़ में जो ज़मीन है, उसके कृषियों को सौंपना होगा। एक और नीति है कर की प्रणाली को बदलना। यदि उचे वर्ग के लोगो से ज़्यादा कर वसूल किया जाए, तो इससे भी आय की असमानता घटेगी।

यह तो बात हुई जात के नाम पर भेदभाव की। स्त्रियों के विरुद्ध भेदभाव भी भारतीय समाज में बहुत बड़ी समस्या है। औरतों पर घरेलू अत्याचार, बलात्कार की घटनाएं, और औरतों का अवैध व्यापार बहुत फैल चुका है। सरकार ने इस समस्या का सामना करने के लिए भी योजनाएँ बनाई है। २०१५ में मेनका गाँधी जी ने औरतों को आय के साधन देने के लिए सरकारी नौकरियों में उनके लिए कोटे का प्रबंध किया। शोषित महिलाओं के लिए हर प्रान्त में सुधार केंद्र खोले गए वहाँ उन्हें रहने की सुविधाओं से लेकर मानसिक सहायता तक, सब साधन उपलब्ध है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का अभियान भी बहुत सक्रीय रूप से आरम्भ किया गया है सरकारी योजनाओं के आधार पर यह बात स्पष्ट है सरकार का मानना है कि महिलाओं के उद्धार के लिए उन्हें शिक्षित करना अनिवार्य है। गाँवों में विद्यालय खोले गए हैं। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गाँवों में स्वयंसेविकाओं को कोतवाली का माध्यम दिया जा रहा है

हमारे देश में भेदभाव, पक्षपात की भावना जड़ तक भरी हुई है, लेकिन इन योजनाओं के माध्यम से स्थिति में बहुत सुधार आया ज़रूर है। शिक्षा और शिष्टाचार के माध्यम से बदलाव आएगा ज़रूर। चाहे देर आए, लेकिन दुरुस्त आएगा।